सन्त स्नेहवश श्रेष्ठि पुत्र को उपज-रहस्य बतलाते

June 1970

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बकरा दौड़ता हुआ आया और आढ़त की दुकान में घुस कर भीतर लगी अन्न की ढेरी चबाने लगा। आढ़त का मालिक एक स्वस्थ नवयुवक, जो अभी पानी पीने कुएं पर चला गया था दौड़ा-दौड़ा आया बकरे की पीठ पर डंडे का ऐसा भयंकर प्रहार किया कि बकरा औंधे मुंह जमीन पर गिर पड़ा। दम निकलते-निकलते बची। मिमियाता हुआ वहाँ से बाहर भाग गया।

आद्य शंकराचार्य एक स्थान पर बैठे यह दृश्य देख रहे थे। उन्हें ऐसा देखकर हँसी आ गई फिर वे एकाएक गम्भीर हो गये। शिष्य श्रेष्ठि पुत्र ने प्रश्न किया-भगवान। बकरे पर प्रहार होते देख कर आपको एकाएक हँसी कैसे आ गई और अब आप इतने गम्भीर क्यों हो गये।

दिव्य दृष्टा आद्य शंकराचार्य ने बतलाया- वत्स। यह बकरा जो आज डण्डे की चोट खा रहा है कभी उसी आढ़त का स्वामी था। यह नवयुवक कभी इसका पुत्र था, इस बेचारे ने अपने पुत्र की सुख-सुविधाओं के लिये झूठ बोला, मिलावट की, शोषण किया वही पुत्र आज उसे मार रहा है जीव की इस अज्ञानता पर हँसी आ गई पर सोचता हूँ कि मनुष्य मोह-माया के बन्धनों में किस प्रकार जकड़ गया है कि कर्मफल भोगते हुए भी कुछ समझ नहीं पाता दुकान में बार-बार घुसने की तरह नश्वरता पर, क्षणिक सुख भोगों पर विश्वास करता है और इस तरह दैहिक, दैविक एवं भौतिक कष्टों में पड़ा-दुःख भुगतता रहता है।

अज-रहस्य की यह कथा अब पुरानी पड़ गई। किन्तु क्या वस्तुस्थिति भी पुरानी पड़ गई? आद्य शंकराचार्य ने श्रेष्ठि पुत्र को जो ज्ञान दिया था, पुनर्जन्म, कर्मफल आसक्ति माया और साँसारिक कष्ट भुगतने के वह सिद्धान्त क्या पुराने पड़ गये? क्या अब वैसी घटनायें नहीं घटती? सब कुछ होता है केवल समझ और शैली भर बदली है। अन्यथा आज भी ऐसी सैकड़ों मार्मिक घटनायें घटती रहती हैं। हम उनका अर्थ जान पायें तो देखें कि वस्तुतः माया-मोह के बन्धनों में पड़ा जीव कितनी निकृष्ट योनियों में पड़ता और कष्ट भुगतना है।

फ्रेडरिक डब्ल्यू. श्लूटर. नामक एक जर्मनी अमेरिका आकर बस गया। उसकी एक दादी थी। जिसका नाम था कैथेरिना सोफिया विट वह फ्रेडरिक से पूर्व ही 1871 में ही अमरीका आकर बस गई थी। यहीं इंडियाना राज्य के बुडबर्न नामक ग्राम में उन्होंने एक कृषक के साथ दुबारा विवाह कर लिया था। सोफिया विट के पति का एक बंगला यहाँ से चार-पाँच मील दूर खेतों में भी बना हुआ था। उसके पति प्रायः वहीं रहते थे। फ्रेडरिक किसी दूसरे शहर में नौकरी करता था किंतु वह मन बहलाने के लिये कभी-कभी अपनी दादी के पास आ जाया करता था। वह अपना अधिकाँश समय इस बंगले पर ही बिताया करता था।

जून सन् 1925 की बात है जबकि फ्रेडरिक यहाँ छुट्टियाँ बिताने आया हुआ था एक दिन उसे शिकार करने की सूझी। बंदूक लेकर बाहर निकला और कोई पक्षी या जीव-जन्तु तो उसे नहीं दीखा हाँ सामने ही एक चीड़ का वृक्ष था उसकी चोटी पर बने एक कोटर में एक वृद्ध कौआ बैठा हुआ था। फ्रेडरिक ने कौवे पर ही निशाना साध लिया पर अभी गोली छूटने ही वाली थी कि कौवे की दृष्टि उस पर पड़ गई सो वह बुरी तरह काँव-काँव करने और पंख फड़फड़ाने लगा।

उसकी यह आवाज सुनते ही फ्रेडरिक का चाचा (सोफिया का पति) दौड़ता हुआ आया और फ्रेडरिक की बन्दूक नीचे करते हुए बोला-यह क्या करते हो भाई- यह तुम्हारी दादी का पालतू कौआ है। इसे फिर कभी मत मारना।

कौवे की मैत्री एक विलक्षण बात है पर यह एक अद्भुत सत्य कथा है। कौवा यद्यपि अधिकाँश समय इस वृक्ष पर ही बिताता था पर कोई नहीं जानता रहस्य क्या था कि वह जब तक दिन में चार-छह बार सोफिया से नहीं मिल लेता था तब तक उसे चैन ही नहीं पड़ता था। कौवे में इतना विश्वास शायद ही कही देखा गया हो, शायद ही किसी और से कौवे की इतनी गहरी दोस्ती जुड़ी हो।

सोफिया की आयु इस समय कोई 85 वर्ष की थी। फ्रेडरिक खेतों से लौटकर घर आया और अपनी दादी के पास बैठकर बातें करने लगा। तभी उसने खिड़की की तरफ फड़फड़ की आवाज सुनी उसने सिर पीछे घुमाया वही कौवा था जिसे उसने अभी थोड़ी ही देर पहले मारते छोड़ा था। कौवा एक बार तो चौंका पर जैसे ही सोफिया ने उसे पुचकारा कि दरवाजे से होकर कौवा भीतर आ गया और सोफिया की गोद में अनजान-अबोध बालक की भाँति लौटने लगा। कौवा निपट वृद्ध हो गया था उसकी एक टाँग टूट गई थी। एक आँख भी जाती रही थी पंख कुछ थे कुछ झड़ गये थे। सोफिया ने कहा- फ्रेडरिक नहीं जानती क्या जन्म का आकर्षण है जो कौवा को मेरे पास आये बिना न इसे चैन और न मुझे।

इस घटना के कोई 2 वर्ष पीछे की बात है। फ्रेडरिक तब मिलिटरी में भरती हो गया था और अब वेस्ट पाइन्ट की इंजीनियर्स बैरक में रह रहा था। यह स्थान ब्रुडवमैन जहाँ उसकी दादी रहती थीं-से कोई 500 मील दूर था। एक रात जब फ्रेडरिक सो रहा था तब खिड़की पर कुछ फड़फड़ाने की आवाज सुनाई दी-होगा कुछ ऐसी उपेक्षा करके वह फिर सो गया, उसे क्या पता था कि जीवन के अनेक क्षण मनुष्य को बार-बार किसी गूढ़तम जीवन रहस्य की प्रेरणा देते रहते हैं पर हमारी उदासीनता ही होती है जो आये हुये वह क्षण भी निरर्थक चले जाते हैं। और हम जीवन की सूक्ष्म विधाओं से अपरिचित के अपरिचित ही बने रह जाते हैं।

फ्रेडरिक जब सवेरे उठा तब उसने देखा एक कौवा भीतर घुस आया है। और मरा पड़ा है उसने पास जाकर देखा तो आश्चर्यचकित रह गया क्योंकि यह कौवा वही था जिसे उसने 2 वर्ष पूर्व मारते-मारते छोड़ा था।

उसने कौवे की मृत्यु की सूचना पत्र लिखकर दादी के पास भेजी पर उधर से उत्तर आया चाचा का। जिसमें लिखा था कि- दादी का निधन हो गया है जिस दिन से वे मरीं वह कौआ दिखाई नहीं दिया।

कौवे की सोफिया से मैत्री, उसके निधन पर उसका फ्रेडरिक के पास जाना और मृत्यु की सूचना देना गहन रहस्य है जिन पर मानवीय बुद्धि से कुछ सोचा नहीं जा सकता। सम्भवतः कोई और आद्य शंकराचार्य वहाँ उपस्थित होते तो कहते इस कौवे का सोफिया से पूर्व जन्म का कुछ सम्बन्ध रहा होगा सम्भव है वह उसका पति रहा हो। उसकी मृत्यु पर भी मोह-ममता कम न हुई हो जिसे पूरी करने के लिये वह अपने नाती फ्रेडरिक के पास पहुँचा होगा और वहाँ शीत सहन न करने के कारण मर गया होगा। यही सब संसार की माया मोह है जो जीव को विभिन्न योनियों में भ्रमण कराता रहता है। भौतिकता सहन करते हुये भी मनुष्य इस तरह के आध्यात्मिक सत्यों की बात क्षण भर को सोचता नहीं जबकि कुछ न कुछ रहस्य इन कथानकों में रहता अवश्य है।


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