परिश्रम ही नहीं, ईमानदारी भी

June 1970

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"एक ही रात में इतने ढेर सारे रुपयों की थैली! अरे! यह तो बता।" माँ ने कड़ककर बेटे से पूछा– "यह धन तू कहाँ से लाया ?"

"सेंध काटकर! माँ ! तू ही तो कहती थी कि मनुष्य को सदैव परिश्रम की कमाई खानी चाहिए। माँ ! महाजन की सेंध काटने में मुझे कितना परिश्रम करना पड़ा, तू इस बात को समझ भी नहीं सकती।"

चपत लगाते हुए माँ ने कहा– "मूर्ख ! मैंने इतना ही नहीं कहा था कि मनुष्य को परिश्रम का खाना चाहिए, वरन् यह भी कहा था कि वह ईमानदारी से कमाया हुआ भी हो। उठा यह धन, जिसका है, उसे लौटाकर आ और अपने गाढ़े पसीने की कमाई का भरोसा कर।"

माता की इस शिक्षा को शिरोधार्य करने वाला चोर युवक अन्ततः महासन्त श्रमणक के नाम से विख्यात हुआ।


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