भगवान के प्रसन्न होने का रहस्य-
दक्षिण कर्नाटक के बेलगाँव जिले की एक महिला सन्तान न होने के कारण बहुत दुःखी थी। भजन, पूजन व्रत, उपवास- जिसने जो बताया, उसने बड़ी श्रद्धा से पूर्ण किये। फिर भी उसकी गोद सूनी-की-सूनी ही रही। अन्त में उदास मन लेकर सन्तान पाने की लालसा से वह चिदम्बर दीक्षित के पास पहुँची। दीक्षित जी उद्भट विद्वान्, समाजसेवी और लोकोपकारी व्यक्ति थे। वह दूसरों के दुःख दर्दों को अपना दुःख-दर्द समझकर दूर करने का भरसक प्रयत्न करते।
दीक्षित जी के पास बर्तन में कुछ भुने हुए चने रखे थे। उन्होंने उस महिला को अपने पास बुलाकर दो मुट्ठी चने दे दिये और कहा- उस आसन पर बैठकर चबा लो। उस ओर कई बच्चे खेल रहे थे। छोटे-छोटे बच्चे, उन्हें अपने पराये का ज्ञान कहाँ होता है। वे भी खेल बन्द करके उस महिला के पास आकर इस आशा में खड़े हो गये कि यह महिला शायद हमें भी खाने को देगी। पर वह तो मुँह फेर अकेली ही चने खाती रही और बच्चे लालच की दृष्टि से टुकुर-टुकुर खड़े देखते रहे।
चने खत्म हो गये तो वह दीक्षित जी के पास पहुँची और बोली- ‘अब आप हमारे दुःख दूर करने के लिये भी कुछ उपाय बताइये।’
‘देखो देवी। फोकट में मिले चनों में से तुम उन बच्चों को चार दाने भी नहीं दे सकीं, जबकि एक बच्चा तो तुम्हारी ओर हाथ तक पसार रहा था। फिर भगवान तुम्हें हाड़-माँस का बच्चा क्यों देने लगेंगे।’
उदार भगवान से और भी अधिक उदारता पाने की आशा करने वालों को अपना स्वभाव और चरित्र अधिक उदार बनाने का प्रयत्न करना चाहिए।