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January 1964

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शिष्यों के पास कुल मिलाकर पाँच रोटी और दो टुकड़े तरकारी निकली। गुरु ने उसे इकठ्ठा किया और मन्त्र बल से अन्नपूर्ण बना दिया। शिष्यों ने भर पेट खाया और जो भूखे भिखारी उधर से निकले वे भी उसी से तृप्त हो गये। सोलोमन नामक शिष्य ने पूछा-गुरु वर, इतनी कम सामग्री में इतने लोगों की तृप्ति का रहस्य क्या है?

ईसा ने कहा-हे शिष्यों। धर्मात्मा वह है जो खुद की नहीं सब की बात सोचता है। अपनी बचत सबके काम आये इस विचार से ही तुम्हारी पाँच रोटी अक्षय अन्नपूर्णा बन गई। जो जोड़ते हैं वे ही भूखे रहेंगे। जिनने देना सीख लिया है उनके लिए तृप्तता के साधन आप ही आ जुटते हैं।


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