अखण्ड ज्योति की रजत जयन्ती

January 1964

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उद्देश्य और रहस्य

उद्देश्य ‘अखण्ड-ज्योति’ के सदस्यगण मिलकर प्रत्येक रविवार को साप्ताहिक सत्संग चलाते हैं—सदस्यों का जन्मदिन जब होता है तब उनके घरों पर हवन एवं पारिवारिक सत्संग का आयोजन चलता है। इस प्रकार परस्पर मिल-जुलकर आत्मीयता बढ़ाने और विचार विनिमय करने के बार-बार अवसर प्राप्त होते रहते हैं। कुछ वर्ष पूर्व भी यहाँ हवन, जप, कीर्तन आदि के माध्यम से सत्संग होते थे, पर उन लोगों में अधिकाँश अन्धविश्वासी और अविकसित मनोभूमि के लोग थे। गायत्री माता से तरह-तरह की कामनायें पूरी करने के लालच से जप, हवन करते थे। जब जिन्होंने चमत्कार नहीं देखा तो वे खिसक गये इस प्रकार वह उत्साह ठण्डा पड़ गया। पर इस बात का संगठन बड़े ठोस आधार पर रक्खा गया है। निष्काम उपासना, जीवन-शोधन एवं युग-निर्माण के लिए कुछ रचनात्मक कार्य करने का उद्देश्य लेकर ही हम लोग मिलते-जुलते हैं और इसी आधार पर विचार विनिमय भी होता है।

किसी सत्संग में हवन नहीं हो पाता तो घृतदीप तथा अगरबत्ती जलाकर यज्ञ, भगवान की प्रतीक पूजा कर लेते हैं और आदर्श एवं उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मिल-जुलकर विचार करते हैं, कार्यक्रम बनाते हैं और एक दूसरे को प्रोत्साहन देते हुए आगे बढ़ाने का प्रयत्न करते हैं। इस प्रकार थोड़े ही दिनों में हमारे सत्संग ठोस कार्य करने लगे हैं। यहाँ का जैसा क्रम यदि अन्यत्र भी चल रहा होगा तो उससे युग-निर्माण का लक्ष्य निकट आने में कितनी सहायता मिल रही होगी, इसकी कल्पना से हम लोगों को बड़ा सन्तोष और आनन्द होता रहता है।

दिसम्बर अंक में रजत जयन्ती का कार्यक्रम पढ़ा, और तुरन्त ही सत्संग में इस विषय पर चर्चा हुई तो हम सबने अपनी ज्ञान-माता ‘अखण्ड-ज्योति’ की शान के अनुरूप वसन्त-पंचमी के दिन एक प्रभावशाली उत्सव मनाने का निश्चय कर डाला। उसकी तैयारी की योजना बनी और कार्य विभाजन हो गया। जो पाँच बातें जयन्ती के सम्बन्ध में कही गई हैं उनके लिये हम में से प्रत्येक व्यक्ति अलग-अलग यह विचार कर रहा है कि वह इस दिशा व्यक्ति गत रूप से क्या करे? दस दिन में सब लोग अपना निश्चय कर लेंगे तब उनके संकल्पों का सम्मिलित स्वरूप बनाकर एक सुव्यवस्थित योजना बनाई जायगी और इस आधार पर हम सन् 64 के रजत-जयन्ती वर्ष का कार्यक्रम निर्धारित करेंगे।

उत्सव आयोजन पर गहरी दृष्टि डालने से हम लोग समझ गये कि यह युग-निर्माण आन्दोलन को प्रगति देने का निमित्त मात्र है। ‘अखण्ड-ज्योति’ का हर दिन दिवाली है। उसका प्रत्येक अंक हर्षोत्सव जैसा है। उसका स्वागत या अभिनन्दन उसकी लक्ष्य पूर्ति द्वारा ही संभव भी है। और किसी प्रकार के स्वागत अभिनन्दन की न तो उसे आवश्यकता है और न वैसा कुछ प्रबन्ध किया गया है। दूसरे संस्थानों की तरह कोई केन्द्रीय बड़ा आयोजन न रखना यही बताता है कि अब उत्सवों का स्वरूप प्रदर्शनात्मक नहीं ठोस कार्यों के रूप में होना चाहिए। इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर जयन्ती की योजना छपी है। इस रहस्य से अवगत होकर हम परिजनों को गर्व एवं गौरव का ही अनुभव हुआ।

हम लोग रजत जयन्ती मनावेंगे ही, देश में अन्यत्र भी यह समारोह छोटे-बड़े रूप में मनेगा ही। इस बहाने युग-निर्माण योजना के अग्रसर होने में कितनी सहायता मिलेगी इसकी कल्पनामात्र से मन पुलकित हो उठता है। इस उत्सव को हम योजना का विशेष प्रेरणा दिवस मान रहे हैं और उसके भूल उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए ही उसे मनाने की तैयारी में लग पड़े हैं।

—ज्वालासिंह राठौर, गोविन्दगढ़


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