राज-काज के सच्चे अधिकारी

January 1964

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक बार काशी नरेश ने कौशल नगरी पर आक्रमण किया और वहाँ के राजा को परास्त करके अपना अधिकार जमा लिया।

राज्यच्युत कौशल नरेश अपने प्राण बचाते हुए वन-जंगलों में छिपे फिरने लगे। इनको पकड़ लेने वाले को एक सहस्र स्वर्ण मुद्राएं पुरस्कार देने की घोषणा काशी नरेश ने कर रखी थी।

वन प्रदेश के जिस गाँव में कौशल नरेश छिपे थे उसमें नदी की बाढ़ आने से भारी क्षति हुई। ग्रामीणों का सब कुछ बाढ़ में बह गया। उनमें से अनेक भूखे तड़प-तड़प कर मरने लगे।

सहृदय कौशल नरेश से अपने पड़ौसियों का यह करुण दृश्य देखा न गया। वे कुछ ग्रामीणों को राजा से अर्थ-सहायता दिलाने के लिए अपने साथ लेकर काशी नरेश के दरबार में जा पहुँचे और कहा— घोषणा के अनुसार एक सहस्र स्वर्ण मुद्रा इन ग्रामीणों को दी जायँ, मैं पकड़े जाने के लिए उपस्थित हूँ।

काशी नरेश को जब सारी बात मालूम हुई तो वे इस मानवता की मूर्तिमान प्रतिमा को देख कर पानी-पानी हो गये। उन्होंने ग्रामीणों की सहस्र स्वर्ण मुद्रा और कौशल नरेश का राज्य वापिस करते हुए कहा—वस्तुतः आप जैसे सहृदय व्यक्ति ही राज-काज के सच्चे अधिकारी हो सकते हैं।

उद्धरेदात्मनाऽत्मानम्


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118