एक साँप को बहुत गुस्सा आया। उसने फन फैलाकर गरजना और फुंसकारना शुरू किया और कहा—मेरे जितने भी शत्रु हैं आज उन्हें खा कर ही छोड़ूंगा। उनमें से एक को भी जिन्दा न रहने दूँगा।
मेंढक, चूहे, केंचुए और छोटे-छोटे जानवर उसके उस गुस्से को देखकर डर गये और छिप कर देखने लगे, देखें आखिर होता क्या है?
साँप दिन भर फुसकारता रहा और दुश्मनों पर हमला करने के लिए दिन भर इधर-उधर बेतहाशा भागता रहा।
फुंसकारते-फुंसकारते उसके गले में दर्द होने लगा शत्रु तो कोई हाथ न आया पर कंकड़ पत्थरों की खरोंचों से उसकी सारी देह जख्मी हो गई शाम होते-होते थकान से चकनाचूर होकर वह एक तरफ जा बैठा।
साँप की परछांई ने पूछा, समझे न गुस्सा करने वाला शत्रुओं से पहले अपने को ही नुकसान पहुँचाता है।