एक बार देवता मनुष्यों के किसी व्यवहार से क्रोधित हो गये। उन्होंने दुर्भिक्ष को पृथ्वी पर भेजा और मनुष्यों के होश दुरुस्त करने की आज्ञा दे दी।
दुर्भिक्ष ने अपना विकराल रूप बनाया। अन्न और जल के अभाव में असंख्य मनुष्य रोते कलपते मृत्यु के मुख में जाने लगे।
अपनी सफलता का निरीक्षण करने दुर्भिक्ष दर्पपूर्वक निकला तो उस भयंकर विनाश के बीच एक प्रेरक दृश्य उसने देखा।
एक क्षुभित मनुष्य कई दिन के बाद रोटी का छोटा टुकड़ा कहीं से पाता है पर वह उसे स्वयं नहीं खाता वरन् भूख से छटपटाकर प्राण त्यागने की स्थिति में पहुँचे हुए एक सड़े कुत्ते को वह रोटी खिला रहा है।
दृश्य को देखकर दुर्भिक्ष का हृदय उमड़ पड़ा और आंखें भर आई। उसने अपनी माया समेटी और स्वर्ग को वापिस लौट गया।
देवताओं ने उतनी जल्दी लौट आने का कारण पूछा तो उसने कहा-”जहाँ सहृदयता का आदर्श जीवित हो वहाँ देवलोक ही होता है। धरती पर भी मैंने स्वर्ग के दृश्य देखे और वहाँ से उलटे पाँवों लौटना पड़ा।”