परिवार की दस प्रतिज्ञायें

January 1964

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मैं साधु वेश में विचरण करता हूँ। अपनी व्यक्तिगत उपासना में संलग्न रहते हुए शास्त्र की आज्ञानुसार परिव्राजक रूप में घूमता रहता हूँ। तीन दिन से अधिक एक स्थान पर नहीं ठहरता। धर्म-शिक्षा संन्यासी के लिए एक धर्म कर्त्तव्य मानी गई है इसलिए जब से कषाय वस्त्र धारण किये हैं तब से इसी गतिविधि को अपनाये हुए हूँ। हिन्दी भाषी चारों ही प्रान्त उत्तर-प्रदेश, बिहार, मध्य-प्रदेश और राजस्थान मेरे भ्रमण क्षेत्र हैं। ‘अखण्ड-ज्योति’ का गत बीस वर्ष से पाठक हूँ। भ्रमण में भी किसी-न-किसी प्रकार उसे प्राप्त कर ही लेता हूँ।

रजत-जयन्ती मनाये जाने के समाचार से मुझे भारी प्रसन्नता है। एक स्थान पर ठहरना नहीं होता इसलिए कोई सामूहिक आयोजन तो न बन सकेगा पर सन् 64 का पूरा वर्ष ‘रजत-जयन्ती वर्ष’ होने से मैं जहाँ भी जाऊँगा वहीं पर निम्नलिखित दस कार्यों के लिये निरन्तर प्रयत्न करता रहूँगा। इस प्रयत्न को मैं ईश्वर-पूजा का ही एक प्रकार मानूँगा।

(1) हर हिन्दू को आत्मबल की प्रेरक शक्ति गायत्री की उपासना के लिए अनुरोध करूंगा। समय चाहे कम ही लगे, भले ही अविधिपूर्वक मानसिक जप और ध्यान कर लिया जाय, पर गायत्री उपासना का स्थान प्रत्येक हिन्दू के जीवन में हो, ऐसा निरन्तर प्रयास करूंगा। अन्य धर्मावलम्बी अपने ढंग से ईश्वर का नाम ले पर उपासना को दैनिक जीवन का अंग ही माना करें ऐसी आस्था जमाने के लिए जो संभव होगा सो सब कुछ करूंगा। जीवन-शोधन और परमार्थ की दिशा में उत्साह पैदा करने के जो प्रयत्न करने पड़ेंगे उनमें कमी न रहने दूँगा। सर्वांगपूर्ण अध्यात्म अपनाने से इसी जीवन में स्वर्गीय आनन्द और सन्तोष का अनुभव हो सकता है यह समझाने के लिये घर-घर भ्रमण करूंगा।

(2) नकली और असली अध्यात्म का अन्तर लोगों को समझाऊँगा। असली अध्यात्म को अपनाने से प्राचीन काल में भारत जगद्गुरु चक्रवर्ती शासक, स्वर्ण सम्पदाओं का स्वामी और नर-रत्नों की खान था। आज नकली अध्यात्म अपनाने से सर्वत्र दुष्प्रवृत्तियाँ पनप रही हैं और बर्बादी के सरंजाम से जुटे हुए हैं। लोगों में कहूँगा कि असली अध्यात्म का सच्चा स्वरूप समझने के लिये ‘अखण्ड-ज्योति’ पढ़ा करें और अध्यात्म को व्यावहारिक जीवन में उतारते हुए स्वर्गीय जीवन का मार्गदर्शन प्राप्त करते रहें।

(3) आचार्यजी के मतानुसार हिन्दू-जाति की भयंकर कुप्रथा विवाह-शादियों में होने वाला अपव्यय तथा दहेज है। वे इस प्रथा का उन्मूलन करके अत्यन्त सादगी के साथ विवाहों की परम्परा आरम्भ करना चाहते हैं। इसके लिए प्रत्येक जाति में सुधारवादी व्यक्तियों का आगे बढ़ना आवश्यक है। विवाह अपनी जातियों में ही लोग करते है। इसलिये यह सुधार जातीय स्तर पर ही सम्भव हैं। आचार्यजी की योजना है कि प्रत्येक जाति की अपनी-अपनी सभायें हों और उनका संगठन बढ़ाकर सुधारक विचारकों की टोली बिना खर्च के विवाहों का आदर्श उपस्थित करते हुए अपनी जाति में वैसा ही उत्साह उत्पन्न करें। अन्य जातीय कुरीतियों तथा संकीर्णताओं का भी यह जातीय सभायें पंचायतें करके उन्मूलन कर सकती हैं। इसलिए जातीय सभाओं के संगठन की भारी आवश्यकता है। अगले वर्ष आचार्यजी ‘अखण्ड-ज्योति’ के पाठकों में से छाँट कर 100 जातीय सभाओं का संगठन उन्हीं लोगों द्वारा आरंभ करने वाले हैं, उस विस्तृत योजना के लिए मैं अभी से हिन्दी भाषा-भाषी प्रान्तों में पूर्व भूमिका तैयार करूंगा।

(4) हिन्दी भाषी लोगों तक ही ‘अखण्ड-ज्योति’ की आवाज सीमित रहे तो 46 करोड़ आबादी के 14 भाषा-भाषी भारत में युग-निर्माण की आवाज कैसे पहुँचेगी? और उन कार्यक्रमों का आयोजन कैसे संभव होगा? इसलिये भारत की अन्य भाषाओं में ‘अखण्ड-ज्योति’ के संस्करण प्रकाशित होने आवश्यक हैं। मैं यह प्रयत्न करूंगा कि गुजराती, मराठी, बंगला और अँग्रेजी भाषाओं के संस्करण जल्दी ही सामने आवें। इसके लिये सेवाभावी अनुवादकों तथा अपने क्षेत्र में कुछ ग्राहक बना सकने की क्षमता वाले लोगों को विशेष रूप से प्रेरणा दूँगा, ताकि यह कठिन कार्य सरल हो सके।

(5) युग निर्माण सत्संकल्प का पाठ उपासना के साथ-साथ स्वाध्याय रूप में सर्वत्र होने लगे उसके लिए शक्तिभर प्रयत्न करूंगा। 25 हजार संकल्प पुस्तकों के बेचने तथा वितरण कराने का कार्य अगले वर्ष में अकेला पूरा करूंगा। सत्संकल्प के प्रत्येक वाक्य की व्याख्या स्वरूप आचार्यजी एक-एक सर्वांग सुन्दर सस्ता ट्रैक्ट तैयार कर रहे हैं। इन ट्रैक्टों को युग-निर्माण की पाठ्य पुस्तक की तरह पढ़ा समझा और मनन किया जाय इसके लिये हर जगह पूर्व सूचना एवं प्रेरणा देकर लोगों में उसकी प्रतीक्षा करने की उत्सुकता पैदा करूंगा।

(6) ‘अखण्ड-ज्योति’ परिवार के जो भी लोग मिलेंगे उन्हें समयदान देते रहकर युग-निर्माण जैसी महान योजना में भागीदार बनने के लिये कहूँगा। इस विचारधारा को व्यापक बनाने के लिये ‘अखण्ड-ज्योति’ के सदस्यों की संख्या बढ़ाना आवश्यक है साथ ही यह और भी महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक अंक को कई-कई अशिक्षित सुनें और कई-कई शिक्षित पढ़े। समय दान देने वाले सदस्य सबसे पहले इसी कार्य को हाथ में लें और योजना का क्षेत्र बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील रहें। आचार्यजी अपना प्रशिक्षण इस वर्ष लाख व्यक्तियों तक विस्तृत करना चाहते हैं, यह संख्या अधूरी न रहने पावे इसके लिये प्रयत्न से उन सब को तत्पर करूंगा, जो परिवार का तनिक भी उत्तरदायित्व अनुभव करते होंगे।

(7) ‘अखण्ड-ज्योति’ परिवार के प्रत्येक सदस्य को अपनी पत्नी समेत कम से कम एक महीना आचार्यजी के सान्निध्य में संजीवन विद्या का प्रशिक्षण प्राप्त करना होगा। अभी नहीं तो कुछ दिन बाद प्रत्येक सदस्य को इसका निमंत्रण मिलेगा। इस शिक्षण में कितने ही जीवन विद्या के ज्ञान-सुयोग्य एवं वयोवृद्ध शिक्षकों की आवश्यकता होगी। उच्चशिक्षा प्रातः उच्च परिस्थितियों में रहे हुये सुसंस्कृत ऐसे रिटायर्ड लोग उस कार्य के लिये चाहिए जो आजीविका सम्बन्धी चिन्ता में मुक्त हों। मैं ऐसे सेवा भावी लोग तलाश करूंगा और उन्हें कहूँगा कि वृद्धावस्था का श्रेष्ठतम सदुपयोग करने के लिए वे इस प्रकार की धर्म सेवा के लिये कटिबद्ध हों।

(8) युग-निर्माण के उपयुक्त गाये जाने योग्य कविताओं का भारी अभाव है। उस अभाव की पूर्ति के लिये मैं हर जगह कवियों से मिलूंगा और उन्हें जन-गायन की आवश्यकता पूर्ण करने लायक युग-निर्माण के आदर्श की शिक्षा देने वाली कवितायें लिखने को कहूँगा। ऐसी कवितायें खड़ी बोली में तो हैं, और अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में भी लिखी जायँ। काव्य के अभाव में युग-निर्माण प्रेरणा पंगु न रहने पावे इसलिये इस ओर जहाँ भी जाऊँगा कवियों से अनुरोध करता रहूँगा।

(9) प्रौढ़ पाठशालाएँ, रात्रि पाठशालाएँ व्यायामशालायें, रामायण कथा, परिवार गोष्ठियाँ, वृक्षारोपण, दीवारों पर वाक्य लेखन, युग-साहित्य के पुस्तकालय, प्राकृतिक चिकित्सालय आदि जहाँ जो सत्कार्य आरम्भ कराये जा सकते होंगे उनका कोई अवसर हाथ से न जाने दूँगा। जो व्यक्ति इन कार्यों के लिए उपयुक्त होंगे उन्हें विशेष रूप से इस दिशा में प्रवृत्त करूंगा।

(10) महिलाओं में जागरण उत्पन्न करने, उनकी मानसिक एवं सामाजिक स्थिति ऊँचा उठाने के लिये सेवाव्रत लेने वाली वयोवृद्ध महिलाओं को सेवा-क्षेत्र में उतरने के लिये कहूँगा। जहाँ ऐसी महिलाएँ मिलेंगी उन्हें कुछ कार्य आरम्भ करने के लिये विशेष अनुरोध करूंगा।

रजत-जयन्ती के अवसर पर अपना पूरा एक वर्ष का समय-दान युग-निर्माण योजना के लिए संकल्प कर रहा हूँ। कोई और भी साथी परिव्राजक इस विचार के मिल सकें तो उन्हें भी उस प्रयत्न से सम्मिलित रहने को कहूँगा।

—शंकरानन्द सरस्वती, अमरकण्टक


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