प्रभावशाली व्यक्तित्व यों बनता है

January 1964

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एक उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति जिस काम में सफल नहीं होता उसमें दूसरा साधारण-सी शिक्षा पाकर भी अपना अधिकार कायम कर लेता है। इन्टरव्यू होता है, जिसमें कई बार देखा जाता है कि एम. ए. पास किए हुए लोग रह जाते हैं किन्तु कई एफ. ए. पास ले लिए जाते हैं। कई पण्डित, विद्वान दुनिया के एक कौने में पड़े-पड़े अपने भाग्य को कोसा करते हैं किन्तु सामान्य ज्ञान रखने वाले दूसरे लोग दुनिया के रंगमंच पर उतरते हैं अपना प्रभाव और महत्ता कायम करते हैं।

बाह्य साधन सुविधा सम्पन्न कई व्यक्ति समाज के एक कोने में स्थान पाते हैं जब कि दूसरे अभावग्रस्त, बाह्य साधन सुविधाओं से रहित व्यक्ति समाज में अपना आकर्षण और महत्व पैदा करते हैं, आगे बढ़कर समाज का नेतृत्व करते हैं। बहुत से लोग इस तरह के विरोधाभास को पक्षपात, भेदभाव, अन्धानुकरण आदि का कारण बताते हुए दूसरों को दोष देकर ही सन्तुष्ट हो लेते हैं। हालांकि कुछ अंशों में ये विषमतायें भी समाज में फैली हुई हैं जिनके कारण उक्त विपरीत परिणाम प्राप्त होते रहते हैं किन्तु अपनी असफलता का प्रमुख कारण मनुष्य का अपना अविकसित, संकीर्ण व्यक्तित्व ही होता है।

महात्मा सुकरात के पास एक व्यक्ति तत्वज्ञान की शिक्षा प्राप्त करने के लिए गया। किन्तु मिलते ही उन्होंने उस व्यक्ति को ठीक से बाल काढ़ने, कपड़े पहनने, उन्हें साफ रखने, शरीर को स्वस्थ बनाने का उपदेश दिया। वह हक्का-बक्का रह गया और तत्वज्ञान न देकर छोटी-छोटी बातें बताने की शिकायत की । इस पर महात्मा सुकरात ने बताया—”स्वस्थ, सबल, व्यवस्थित जीवन ही आध्यात्मिक साधना की प्राथमिक आवश्यकता है। इसके अभाव में कोई भी तत्वज्ञान, आध्यात्मिक अनुभूति का अधिकारी नहीं है।” जीवन में सामान्य बातों से लेकर असाधारण सफलताओं के लिए व्यक्तित्व का ठोस, सबल और सर्वांगपूर्ण विकसित होना आवश्यक है। इसके बिना सफलता की आशा करना दुराशा मात्र ही है। स्वास्थ्य, शिक्षा, रहन-सहन, बोल-चाल, काम करने का तरीका आदि विभिन्न बातें व्यक्तित्व के अंग हैं। इन सभी का व्यवस्थित, स्वस्थ, सुन्दर सुरुचिपूर्ण होना सबल एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व का आधार है।

किसी भी पदार्थ के स्वस्थ, सुन्दर, व्यवस्थित, निर्मल आचरण की ओर आकर्षित होना मानव स्वभाव की एक साधारण वृत्ति है। स्वास्थ्य, कपड़े, रहन-सहन के तरीके, बोल-चाल, भाव- भंगिमा आदि व्यक्तित्व के बाह्य प्रतिबिंब हैं जिनसे दूसरे लोग प्रभावित प्रेरित होते हैं। जिनके बाल अस्त-व्यस्त बिखरे हुए हों, वस्त्र गन्दे और बेतरतीब हों, जिनके पास जाने से ही बदबू आती हो इस तरह के लोगों का प्रथम प्रभाव ही बुरा पड़ेगा और समाज में लोग उनसे दूर हटने का प्रयत्न करेंगे। फिर ऐसे व्यक्ति कोई बड़ी सफलता मिलने की आशा कैसे रख सकते हैं?

संयमित और मर्यादित जीवन बिताकर सुन्दर स्वास्थ्य पाया जा सकता है। सुन्दर स्वास्थ्य प्रकृति का महत्वपूर्ण उपहार है जो प्रत्येक प्राणी को मिलता है। अपने दुष्कृत्यों, अमर्यादित, अनियमित जीवन, अप्राकृतिक रहन-सहन के कारण ही स्वास्थ्य खराब होता है। शरीर और वस्त्रों को साफ रखना भी कोई कठिन बात नहीं, केवल आलस्य के कारण ही मनुष्य तरह-तरह की बहाने बाजी लगाकर इनसे बचना चाहते हैं। कई लोग कहते है- “क्या किया जाय पैसों के अभाव में उनके लिए साफ-सुधरे रहना, स्वस्थ बनना सम्भव नहीं।” किन्तु यह अपनी कमी को छिपाने का प्रयत्न दुहरी भूल है। कोई भी व्यक्ति इतना गरीब नहीं होता जो कपड़े तो पहने किन्तु उन्हें साफ रखने को साबुन के पैसे खर्च न कर सके। उल्टे साफ न करने से कपड़े मैल और पसीने में गलकर अधिक फटते हैं, जिससे साबुन आदि के खर्चे से अधिक हानि हो जाती है।

जो खा सकता है वह स्वस्थ भी रह सकता है। जो कपड़े पहन सकता है वह उन्हें स्वच्छ भी रख सकता है। जो बाल रख सकता है, वह तेल और कंघी भी जुटा सकता है। जो जूते मोजे पहनता है, वह उनकी सफाई पालिश आदि भी कर सकता है। अपने बढ़े हुए नाखून काट सकता है। आँखों में जमी हुई कीचड़ धो सकता है। किन्तु मनुष्य लापरवाही और आलस्यवश अपने स्वास्थ्य और सफाई का उत्तरदायित्व पूरा नहीं करता, जिससे उसके व्यक्तित्व का बाह्य ढाँचा ही भद्दा, फूहड़ मालूम पड़ने लगता है और देखने वालों पर विपरीत प्रभाव डालता है। फिर नौकरी न मिले, इन्टरव्यू में असफल होना पड़े, दर-दर धक्के खाने पड़ें तो इसमें आश्चर्य और दुःख की क्या बात है? इतना ही नहीं अस्वस्थता, गन्दगी, अव्यवस्था से तो मनुष्य को आन्तरिक प्रफुल्लता, सन्तोष, शान्ति, उत्साह, स्फूर्ति आदि भी नहीं मिलते।

इस सम्बन्ध में एक बात और भी महत्व की है। व्यक्तित्व को सुघड़, स्वस्थ बनाने के लिए स्वास्थ्य, सफाई, स्वच्छता, व्यवस्था की तो आवश्यकता है ही किन्तु इसका उद्देश्य स्वास्थ्य संचय करने का अथवा बनाव शृंगार, फैशन, तड़क-भड़क को ही महत्व देने के लिए नहीं होना चाहिए। इससे यही बातें व्यक्तित्व के लिए हानिप्रद और विरोधी बन जाती हैं। अधिक टीम-टीम बनाना, चटक-मटक से रहने की आदत, गम्भीरता, स्वाधीनता, संजीदगी का नहीं वरन् छिछोरपन और बचकानी वृत्ति का परिचय देती है।

कई लोग प्रथम भेंट में ही लोगों पर ऐसा प्रभाव डालते हैं कि वे सहज ही उनसे आकर्षित और प्रभावित हो जाते हैं। ऐसे लोगों में एक तरह का जादू होता है। उनके चेहरे की आकर्षक मुद्रा, मुस्कराहट, नेत्रों में आशा भरी चमक, गजब की होती है। ऐसे व्यक्ति जहाँ होते हैं वहाँ अपने लिए अनुकूल वातावरण बना लेते हैं। उपयुक्त स्थान प्राप्त कर लेते हैं। इसका कारण होता है मनुष्य का आत्म-विश्वास, दृढ़ इच्छा शक्ति, चेहरे से निकलता हुआ जीवन, कार्य क्षमता का प्रकाश। ये ही तत्व दूसरों पर मनुष्य की अदम्य शक्ति की छाप देते हैं और जादू की तरह प्रभावित करते हैं।

संसार में अधिकतर प्रमाण-पत्र, सिफारिशों के बजाय व्यक्तित्व के ये खुले, प्रमाण-पत्र और आत्म-विश्वास की अचूक सिफारिश ही महत्वपूर्ण होती है, जो हर जगह मनुष्य को स्थान दिलाती है। व्यक्तित्व के इस सक्षम स्वरूप की उपलब्धि चरित्र और नैतिक बल की दृढ़ता पर ही सम्भव होती है। यह मन की सबलता का परिणाम है। व्यक्तित्व का प्रधान अंग, पुष्ट सशक्त मनोभूमि का होना, आत्म-शक्ति का विकसित होना ही है, जो बाह्य जीवन के सामान्य होने पर भी अप्रत्यक्ष रूप से दूसरों को प्रभावित करता है।

बौद्धिक सजगता, सतर्कता भी व्यक्तित्व के विकास और पुष्टि के लिए आवश्यक है। इनके अभाव में मनुष्य दूसरों द्वारा मूर्ख बनाया जा सकता है, अपने काम में धोखा खा सकता है, जीवन में आये उन्नति-विकास के महत्वपूर्ण अवसरों को खो सकता है। विभिन्न कार्यों में जीवन के विभिन्न क्षेत्रों का पर्याप्त ज्ञान, बौद्धिक विकास का होना आवश्यक है। इसके अभाव में व्यक्तित्व का महत्व, वजन प्रभाव नहीं होता। शक्ति और सामर्थ्य, उपयोगिता के आधार पर ही व्यक्तित्व का मूल्य, महत्व निर्धारित होता है।

कई लोगों की धारणा होती है कि बुद्धि एवं ज्ञान का विकास, सामर्थ्य शक्ति की वृद्धि साधन-सम्पन्न धनवानों को ही सम्भव और सुलभ है, किन्तु यह भूल है। संसार के अधिकाँश बुद्धिमानों का प्रादुर्भाव गरीबों में से ही हुआ है। विपरीत परिस्थितियों में भी कई लोगों ने असामान्य सफलतायें अर्जित की हैं। सचमुच बढ़ने वालों को, प्रगति के अग्र-दूतों को, साधन सुविधाओं की कमी रोक नहीं सकती। इसके लिए प्रबल जिज्ञासा, उत्कट इच्छा शक्ति और लगनशीलता, सक्रियता की आवश्यकता है, जिसके लिए सबको समान अधिकार मिले हैं।

बौद्धिक विकास, क्षमता, सामर्थ्य शक्ति आदि का सदुपयोग भी, विवेक- शीलता अनुभव, ज्ञान, सन्तुलित मनोभूमि के द्वारा ही सम्भव है अन्यथा लोग बुद्धिमान, समर्थ, सशक्त होकर भी खतरनाक,मूर्ख बेहया, भयानक, हानिकारक बन सकते हैं, जिससे व्यक्तित्व सुघड़, सुन्दर और पुष्ट होने के बजाय भयंकर, सन्देह-युक्त बन जाता है और लोग ऐसे व्यक्ति से बचने, दूर हटने की कोशिश करते हैं। शिक्षित, समर्थ, जानकार लोगों के द्वारा किए गये अपराध, बदमाशी, दुष्कृत्य साधारण लोगों से अधिक भयंकर होते हैं। अतः बौद्धिक विकास-शक्ति सामर्थ्य के साथ-साथ विवेक, विचार-शीलता, उत्कृष्ट मानसिक स्थिति का होना भी आवश्यक है।

व्यक्तित्व के विकास के लिए मनुष्य का दृष्टि-कोण सामूहिकता प्रधान, सामाजिक होना आवश्यक है। जो अपने व्यक्ति गत स्वार्थ को स्थान न देकर सामूहिक हितों का ध्यान रखते है। उन्हें समाज की बहुत बड़ी शक्ति का सहयोग मिल जाता है। उनके साथ अनेकों का सहयोग, सद्भावनायें आदि होती हैं। नेतृत्व करने वाले नेता महापुरुष, सुधारकों के व्यक्तित्व में यही विशेषता होती है। समग्रता में ही व्यक्तित्व की महानता, विशालता सन्निहित है।

व्यक्तित्व का एक अंग है मनो-विनोद की वृत्ति-हँसमुख, प्रसन्न रहने की आदत। इससे जीवन में रस पैदा होता है। नवीन स्फूर्ति, उत्साह पैदा होता है। मानसिक तनाव, थकावट दूर होकर कार्य-क्षमता का विकास होता है जिससे व्यक्ति अधिक कार्य कर सकने में समर्थ होता है। महापुरुषों को विनोद-वृत्ति, हँसी उनको कार्य-क्षमता, नवीन बल प्राप्त कराती है। किन्तु इस बात का ध्यान रखा जाय कि विनोद संयमित और मर्यादित हो। अन्यथा यही व्यक्तित्व के लिए एक खतरा बन जाता है और जीवन निष्प्रभाव, हल्का, एक मजाक बन कर रह जाता है। व्यक्तित्व का कोई वजन नहीं रहता। बात-बात में हँसी मजाक करना, काम के समय विनोद करना अपने व्यक्तित्व की कीमत और प्रभाव को कम करना है।

उत्तेजना, उद्वेगशीलता का अभाव होना व्यक्तित्व की सबलता का प्रमाण है। व्यवहार कुशल सहिष्णु, सन्तुलित निर्णय शक्ति वाले मनुष्य ही संसार की विचित्रता, विरोध, प्रतिकूलताओं में भी समन्वय समझौता करके रास्ता निकाल लेते हैं और आगे बढ़ते हैं। बात-बात में तुनकमिज़ाज, चिड़चिड़े, उत्तेजित, उद्वेग-शील होने वाले व्यक्ति यों से सभी बचने का, दूर रहने को प्रयत्न करते हैं, और ऐसे व्यक्ति अपने काम में भी सफल नहीं होते, न किसी का सहयोग ही प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए व्यक्तित्व के विकास में शान्त, गम्भीर, सहनशील और विनम्र होना सहायक एवं आवश्यक माना गया है।


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