तप से ही कल्याण होगा

January 1964

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

“जिस प्रकार अग्नि में स्वर्ण को तपाने से उसके तमाम मल नष्ट हो जाते हैं, कान्ति अधिक आती है और मूल्य बढ़ जाता है, उसी प्रकार जो सत्य-रूपी अग्नि में प्रवेश करते हैं, उनका केवल शारीरिक बल ही नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक बल भी अहर्निश वृद्धि को प्राप्त होता है। सच्चा तप निर्बल को सबल, निर्धन को धनी, प्रजा को राजा, शूद्र को ब्राह्मण, दैत्य को देवता, दास को स्वामी और भिक्षुक को दाता बना देता है। सच्चे तप का भाव उस देश-भक्त में है जो अपने देश एवं अपनी जाति के गौरव और प्रतिष्ठा, कीर्ति और मान, सम्पत्ति और ऐश्वर्य की वृद्धि और उन्नति के लिए दृढ़ इच्छा रखता है। अनेक प्रकार के दुःखों, कष्टों और संकटों को सहन करने, कठिन से कठिन मेहनत और श्रम को उठाने और विघ्नों से मुकाबला करने के लिए उद्यत रहता है। सच्चे देश-प्रेमी और देशानुरागी कल्याण की इच्छा करते हुए तप का अनुष्ठान करके, आत्मा और मन को धर्माचरण-रूपी प्रचण्ड अग्नि में दग्ध करके, अपने और अपने देश की अपवित्रता, मलिनता और अन्य अशुद्धियों को दूर कर जाति को आरोग्यता एवं सुख-सम्पत्ति की योग्यता प्रदान करते हैं। जिन देशानुरागी पुरुषों में तपश्चर्या नहीं, जो मुसीबतों, विघ्नों और आफतों का मुकाबला करने से घबराते हैं, जो द्वन्द्वों को सहन नहीं कर सकते, जो भूख और प्यास, सर्दी और गर्मी धूप और छाँह, कोमल और कठोर, मीठा और खट्टा आदि द्वन्द्वों के दास हैं, ये संसार-रूपी युद्ध-पोत में कदापि कृत-कृत्य नहीं हो सकते।”

-महामना मदन मोहन मालवीय


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118