स्वामी मगनानन्द जी

July 1952

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(कुँ. वीरेन्द्र सिंह जी, कोटा)

श्री स्वामी मगनानन्द जी महाराज छोटी अवस्था में ही घर बार छोड़ कर विरक्त हो गये थे। कोटा से खतौली और ग्वालियर के श्यौपुर कस्बे में 12-14 वर्ष विराजे और यहीं उन्होंने शरीर छोड़ा। खातौली से 7 मील की दूरी पर शंकर जी का स्थान है। वहाँ पर धौकड़े में वृक्षों की भरमार है इसी कारण वह स्थान धौकड़ेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है यह स्थान बिलकुल निर्जन है तथा प्रायः शेर आदि जंगली जानवर यहाँ तथा इसके आस पास पड़े रहते हैं।

स्वामी जी कहा करते थे कि यह स्थान सिद्ध पीठ है इसलिए मैं नासिक छोड़कर यहाँ आया हूँ। आज भी इस इलाके के 40 वर्ष की अवस्था से ऊपर के किसी भी व्यक्ति से स्वामी जी की चर्चा की जाये तो वह उनका नाम सुनते ही गदगद हो जाता है। यह सभी को विदित है कि उन्होंने गायत्री की उपासना करके सिद्धावस्था को प्राप्त किया था। उनकी सिद्धियों के बारे में वहाँ के सत्संग प्रेमी सज्जनों के मुख से अनेक गाथाएं सुनी जा सकती हैं।

ठिकाना खातौली के एक सज्जन के ठिकाने के विरुद्ध जमीन का मामला चल रहा था। मुकदमे के कारण ठिकाने की आर्थिक स्थिति खराब हो चुकी थी। कोटा के पॉलिटिकल एजेन्ट का दफ्तर भरतपुर होता था। एजेन्ट ने उसका अपमान करके दफ्तर से बाहर निकल वा दिया था।

इन ठिकाने दार महोदय को भरतपुर में घूमते-2 इन स्वामी जी महाराज के दर्शन हुए। उन्हें दुखी देखकर स्वामी जी ने पूछा क्या भूखे हो। उनके हाँ कहने पर उन्होंने धूनी में से निकाल कर एक अखरोट दिया। इसी में उनकी क्षुधा पूर्ण रूप से तृप्त हो गई। इसके बाद उन्होंने अपनी दुख भरी गाथा स्वामी जी को सुनाई। सुनकर स्वामी ने गम्भीरता तथा उदासीनता के साथ कहा कि कल स्वयं एजेन्ट तुझे बुलाकर अनुकूल फैसला कर लेगा। सचमुच ऐसा ही हुआ। एजेन्ट ने दूसरे दिन उन ठिकानेदार को स्वयं बुलाया और उनकी जब्त की हुई भूमि की वापसी का हुक्म दे दिया।

लगभग एक साल स्वामी जी विचरण करते हुए उधर से निकले तो ठिकानेदार ने बड़े आग्रहपूर्वक उधर रख लिया और आजीवन उनकी सेवा की। आज भी उनके घर पर महाराज की धूनी की अंशभूत अखंड अग्नि जलती रहती है वह कभी बुझने नहीं दी जाती।

एक दूसरी घटना यह है कि मेरे नाना जी जो बड़े ही शुद्ध हृदय तथा साधु सेवी थे, महाराज की सेवा में प्रायः रहा करते थे। एक दिन नाना जी महाराज जी के पास जा रहे थे जो चुपके से मामा जी (जो उस समय पाँच साल के थे, उनके पीछे हो लिए नाना जी को इसका कुछ ध्यान न था। रास्ते में नदी थी। नाना जी तो नदी पार कर गये पर मामा जी जब उसे पार करने लगे तो बीच में ही डूब गये। मामा जी अब भी सुनाया करते हैं कि जब वे डूब गये तो उन्हें ऐसा लगा कि कोई महात्मा हाथ पकड़ कर उन्हें बाहर निकाल रहे हैं। वे निकल आये और बच गये।

नाना जी जब स्वामी जी के पास पहुँचे तो उन्होंने बहुत डाँटा कि “बच्चों को साथ क्यों लाते हो?” नानाजी ने कहा कि मैं तो नहीं लाया। थोड़ी देर में मामा जी आ गये और डूबने का वृत्तांत उन्होंने सुनाया। वास्तव में स्वामी जी के सूक्ष्म शरीर ने ही उन्हें डूबने से बचाया था।

इस प्रकार की अनेक घटनाएं हैं जिनका उल्लेख इस छोटे लेख में होना संभव नहीं। गायत्री उपासना की महिमा अपार है उससे गृहस्थ और महात्मा सभी उच्च स्थिति पर पहुँच सकते हैं।


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