उन्नति के पथ पर

July 1952

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(श्री छेदीलाल शर्मा आयुर्वेद रत्न, कुण्डेश्वर)

मेरे पिता जी की आर्थिक स्थिति अच्छी न थी। मेरे मामा जी श्री पंचदेव जी मुझे अपने यहाँ ले आये और उन्हीं के अनुग्रह एवं प्रबन्ध से मेरी शिक्षा हुई। शिक्षा काल में नवाब सिंह जी नामक एक सत्पुरुष से घनिष्ठता बढ़ी। जहाँ उन्होंने अनेक अन्य सत्य परामर्श देकर मेरे जीवन को सन्मार्ग की ओर प्रेरित किया वहाँ उन्होंने गायत्री उपासना में तत्पर रहने लगा।

इस साधना से मुझे असाधारण लाभ हुए हैं। कुमार्ग से, कुविचारों से स्वभावतः घृणा हुई और उस मार्ग पर चलने के भीतर से ही ऐसा उत्साह पैदा हुआ जिसके लिए अनेक साधन और सत्संग भी बहुधा सफल नहीं होते। ब्राह्मण का कर्तव्य है उसके जीवन की गतिविधि क्या होनी चाहिए इन शिक्षाओं को अन्तःकरण में बैठी हुई कोई शक्ति मुझे हर घड़ी सिखाती रहती, यह शक्ति और कोई नहीं गायत्री माता ही थी। मैं अपने निजी अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि यदि छोटी ही आयु से किसी बालक को गायत्री का उपासक बना दिया जाय तो वह सहज ही अनेक प्रकार के दुर्गुणों से बचता हुआ सन्मार्ग का पथिक बन सकता है।

आध्यात्मिक जीवन के अतिरिक्त साँसारिक कार्यों में भी माता की कृपा एवं सहायता के अनेक प्रमाण समय-समय पर मुझे मिलते रहे हैं। कुछ दिन पूर्व ही मैं कम्पाउण्डरी की नौकरी पर नियुक्त हुआ था। उस नियुक्ति को अधिक दिन न बीतने पाये कि उन्नति का नया अवसर आ गया, मैं इंचार्ज वैद्य के पद पर आ गया और आज कुण्डेश्वर औषधालय में सफलता पूर्वक चिकित्सा कर रहा हूँ।

मेरे एक मित्र श्रवण कुमार जी नौकरी की तलाश में कुछ दिन से परेशान थे। मैंने उन्हें गायत्री उपासना की सलाह दी, उन्होंने गत नवरात्रियों में मेरे साथ चौबीस हजार का लघु अनुष्ठान किया। उन्हें माता की कृपा प्राप्त हुई और 10 दिन बाद ही एक अच्छी नौकरी मिल गई। उनके अफसर भी बहुत खुश हैं और आगे उन्नति के लक्षण दिखाई दे रहे हैं।

आयु की दृष्टि से मैं तो अभी बालक ही हूँ। पर आयु वृद्ध और ज्ञानवृद्ध सज्जनों से यही बात सुनने को मिलती है कि गायत्री से बढ़ कर आत्मकल्याण का और कोई मार्ग नहीं है। जो माता का अंचल पकड़ता है उसको आध्यात्मिक और सांसारिक लाभ ही होता है।


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