गायत्री के अनुग्रह का परिचय

July 1952

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(श्री अम्बाशंकर गोविन्द जी व्यास, जूनागढ़)

परिस्थितियों-वश मैं स्कूली शिक्षा बहुत ही कम प्राप्त कर सका। कक्षा 4 उत्तीर्ण करने के बाद रोटी कमाने की चिन्ता हुई और 12) रुपया मासिक की नौकरी पर लग गया। बड़ा परिवार, छोटी नौकरी, अल्प शिक्षा, सहायकों का अभाव, इस प्रकार की विपन्नताओं से घिरे होने पर कोई मार्ग न सूझता था, उस समय मैंने गायत्री माता का आश्रय लिया।

भगवती का अञ्चल पकड़ने पर मुझे नया प्रकाश प्राप्त हुआ नया मार्ग सूझा। मैंने कुछ अँग्रेजी सीखी, टेलीग्राफी सीखी, तारबाबू की परीक्षा दी और पास हो गया। इतने पर भी रेलवे की नौकरी मिलना मेरे लिए कठिन था। सबसे बड़ी बाधा तो उस अँग्रेज डॉक्टर की थी जो रेलवे की नौकरी में बहुत अच्छे स्वास्थ्य के लोगों को लेने का कट्टर पक्षपाती था। वह कमजोर लोगों को हरगिज पास नहीं करता था। मेरा स्वास्थ्य पहले से ही दुर्बल था, उन दिनों तो मैं बीमारी से उठा था इसलिए और भी कमजोर हो रहा था। घोर निराशा के वातावरण में मैंने भी एक तारबाबू की खाली जगह के लिए अर्जी दी। ऐसी 15 अर्जी और थीं। हम 16 उम्मीदवार डाक्टरी मुआइने के लिए पेश हुए। मेजर हेन्स बहुत ही उग्र स्वभाव के थे, पक्षपात करना उनकी प्रकृति में ही न था। शेष सभी उम्मीदवार मुझसे स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छे थे। मैं मन ही मन माता का जप और ध्यान करने लगा। डॉक्टर ने 16 उम्मीदवार नापास कर दिये और मुझे पूर्ण स्वस्थ होने और फिट होने का प्रमाण पत्र दे दिया इस प्रमाण से हर कोई आश्चर्य चकित था पर मैं जानता था कि माता की कृपा से दुनिया में सब कुछ सम्भव है।

मुझे तारबाबू की नौकरी मिल गई। अँग्रेजी की भी योग्यता दिन दिन बढ़ती गई। मेरे ऊपर छोटे से लेकर बड़े अफसरों तक की विशेष कृपा रहती थी। और समय समय पर सभी का अनुग्रह प्राप्त होता रहता था, इस प्रकार मैं उन्नति करते करते स्टेशन मास्टर के पद पर पहुँच गया।

एक बार मैं गार्ड के डिब्बे में से नीचे उतर रहा था तो रेल के तेज रंगतार पकड़ लेने के कारण मैं बुरी तरह गिरा। टंकी के खम्भे से बुरी तरह टकराया ठोकर खाकर फिर बोर्ड पर औंधे मुँह गिरा और उससे धक्का खाकर फिर पटरी पर गिर पड़ा। इस प्रकार की घटना घटित होने पर आमतौर से किसी का प्राण बचना कठिन है, पर गायत्री की कृपा से मैं कुछ घन्टे बेहोश रह कर और मामूली चोट खाकर ही अच्छा हो गया।

मेरे पिताजी गायत्री के परमभक्त थे। वे अन्तिम समय केवल 4 दिन तक बहुत ही मामूली बीमार रहे थे। मृत्यु से दो दिन पूर्व उन्होंने पास बैठे हुए लोगों से कहा कि—”देखो सामने वह कैसी सुन्दर लड़की खड़ी है और मुझसे कह रही है दो दिन बाद तुम मेरे घर चलना” मैं भी उस समय मौजूद था। मैंने कहा यहाँ तो कोई लड़की नहीं है आपको व्यर्थ ही भ्रम हो रहा है। वे यह कहते हुए चुप हो गये कि इन्हें तुम नहीं देख सकते यह गायत्री माता है, मुझे तीसरे दिन इनके धाम को जाना है।” तीसरे दिन ब्रह्म मुहूर्त में गायत्री का जप करते-करते उनका शरीर शान्त हो गया।

एक बार मैं 42 दिन के टाइफ़ाइड से मरते-मरते बचा। डॉक्टर जवाब दे चुके थे और साँस निकलने की प्रतीक्षा की जा रही थी, उस बेहोशी में ही माता ने मुझे दर्शन दे कर अभयदान दिया और मृतक से जीवित हो गया। एक बार मेरी नौकरी छूट गई थी पर कुछ समय बाद ही टेलीग्राफी शिक्षक के पद पर मेरी फिर नियुक्ति हो गई।

ऐसे अनेकों अवसर मैंने अपने जीवन में देखे हैं जिनसे यह अटूट विश्वास हो गया है कि गायत्री उपासक को सदैव सुख शान्ति की ही प्राप्ति होती है।


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