यदि शुभ कार्य करे तो उसे फिर फिर करें। उसमें रत होवे। पुण्य का संचय सुख का कारण होता है।
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जो शुद्ध निर्मल दोष रहित मनुष्य को दोषी ठहराता है तो उस दोषी ठहराने वाले मूर्ख को ही पाप लगता है जैसे हवा की दिशा के विरुद्ध फेंकी हुई धूल फेंकने वाले पर पड़ती है।