(डॉक्टर वि. सम्पत्कुमार आचार्य, नेगी)
हमारे इस प्रदेश में बिच्छू बहुत निकलते हैं। जिनके द्वारा मनुष्यों को काटे जाने की घटनाएँ आये दिन घटित होती रहती हैं। बिच्छू के काटने में कितनी पीड़ा होती है इसे वही जान सकता है जिसे कभी बिच्छू ने काटा हो। कुछ बिच्छू इतने विषैले होते हैं कि उनका डंक लगने से मनुष्य की मृत्यु तक हो जाती है।
इस प्रदेश में बिच्छू काटने की कोई अचूक चिकित्सा उपलब्ध नहीं है। बड़े शहरों को छोड़ कर दूरवर्ती देहातों में सुशिक्षित डॉक्टर का मिलना तो दूर, मामूली दवा दारु बनाने वाले भी नहीं मिलते। जो मिलते हैं उनकी चिकित्सा ऐसी कारगर नहीं होती जो बिच्छू के काटे हुए रोगी की पीड़ा में जल्दी सहायता पहुँचा सकें। दूसरी ओर मन्त्र द्वारा विषोपचार करने वाले इस विद्या में अच्छे जानकार होते हैं। उनकी झाड़ फूँक से बहुधा आश्चर्यजनक परिणाम होते हैं। ‘रोता आवे, हँसता जावे’ वाली उक्ति इस सम्बन्ध में यहाँ बहुधा चरितार्थ होती है।
जिन लोगों को बिच्छू उतारने का मन्त्र आता है वे दूसरों को उसे नहीं बताते। दूसरे वह मन्त्र बड़ी कठिन विधि से सिद्ध होता है। जब तक सिद्ध न किया जाय तब तक मन्त्र लाभ नहीं होता। इस कारण जहाँ सिखाने वाले का इनकार बाधक होता है वहाँ सीखने वालों का हिम्मत हार बैठना भी उस विद्या में अवरोध का कारण बताता है। कुछ समय पूर्व जैसे शक्तिशाली मन्त्रोपकारक थे अब वैसे कहीं कोई विरले ही दीखते हैं।
मेरे एक मित्र बिच्छू विष उतारने का मन्त्र सीखने के लिये बहुत उत्सुक थे परन्तु उपरोक्त कठिनाइयों के कारण उनका मनोरथ पूरा न हो रहा था। एक दिन उनने गायत्री की महिमा पढ़ी। उन्हें विश्वास हो गया कि सबसे बड़ा मन्त्र गायत्री है जो कार्य संसार के अन्य किसी मन्त्र से हो सकता है वह गायत्री से भी अवश्य हो सकता है। उनने गायत्री का एक अनुष्ठान किया और उसके पश्चात् बिच्छू के काटे हुए पीड़ितों का मन्त्रोपचार करना शुरू कर दिया। फलस्वरूप उन्हें भारी सफलता मिलने लगी, जो लोग अन्य मन्त्रों से विष उतारते हैं उनकी अपेक्षा हमारे मित्र का गायत्री द्वारा विष उतारना अधिक एवं शीघ्र परिणाम उपस्थित करने वाला सिद्ध होता है।
इसी प्रकार भयंकर विषैले सर्पों के विष को भी गायत्री मन्त्र द्वारा निर्विष किये जाने के अनेक उदाहरण हैं।
मेरी धर्मपत्नी भी मेरे साथ-साथ गायत्री उपासना में प्रवृत्त रहती है। पड़ोस की स्त्रियाँ उस पर बहुत श्रद्धा करती हैं और कोई बच्चा बीमार होता है तो उसके पास ले जाती हैं। धर्मपत्नी गायत्री से जल अभिमन्त्रित करके देती है और उसका प्रभाव औषधि से भी अधिक होता है।
गायत्री द्वारा निस्सन्देह मनुष्य के शरीर और आत्मा पर चढ़े हुये विषों को उतारा जा सकता है और स्वच्छ शान्ति का आनन्दोपभोग किया जा सकता है।