कठिनाइयों का निवारण

July 1952

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(श्री पुरुषोत्तम आत्माराम साखेर, पवारखेड़ा)

वैसे तो हमारे परिवार की धार्मिक प्रवृत्ति वंश परम्परा से चली आती है, पर श्री रामेश्वर प्रसाद जी सोनी एग्रीकल्चर असिस्टेंट की प्रेरणा से मेरे मन में गायत्री साधना के लिए विशेष प्रवृत्ति उत्पन्न हुई। काफी अरसे से मैं गायत्री साधना में लगा हुआ हूँ और देखता हूँ कि उसके कारण आत्मा की दिन-दिन उन्नति हो रही है। अनेक दोष दुर्गुण छूट गये हैं और उनके स्थान पर नये सद्गुणों का विकास हुआ है।

यहाँ और भी कई नए महानुभाव गायत्री उपासना करते हैं उनमें से कई को गायत्री माता की कृपा के चमत्कारी अनुभव हुए हैं—

(1) मेरे परम मित्र विनायक रावजी वैद्य कम्पाउन्डर मेन हास्पिटल के बालक 4-6 महीने के होकर मर जाते थे। आप अँग्रेजी, आयुर्वेदिक, होमियोपैथीक, यूनानी उपचार करके तंग आ रहे थे मेरा उनसे परिचय होने पर आपको गायत्री मन्त्र में विश्वास बढ़ा उनको बहुत कार्य होने की वजह से यह कार्य मुझे सौंपा गया, तब मैंने वेद माता की अनुमति प्राप्त करके यह कार्य प्रारम्भ किया। माता की अनुकम्पा से एक पुत्र रत्न प्राप्त हुआ जो सबकी गोदियों में किलोल करता फिरता है।

(2) श्रीवासन सदाशिव देहाडराय कृषि विभाग के सुप्रिन्टेन्डेंट पवारखेड़ा फार्म पर सरकार को कुछ आर्थिक क्षति पहुँचाने के अभियोग में फौजदारी मुकदमा चलाया गया जब मुझसे उनका परिचय मुकदमे के दौरान में हुआ तो मैंने उनको वेद माता गायत्री का अनुष्ठान कराने को कहा तो उनके आग्रह से मैंने खुद यह अनुष्ठान किया फलस्वरूप वे इस मुकदमे से निर्दोष बरी हुए।

(3) ऐसे ही मेरे मझले भाई निरोत्तम रावजी साखरे सरकारी नौकरी दीवानी मुहकमे से इस्तीफा देकर बेकार बैठे थे, उनके लिए वेद माता गायत्री का अनुष्ठान किया और वह आज कल भोपाल में सुपरेन्टेन्डेन्ट (बेलिफ ) की जगह पर काम कर रहे हैं।

यह तो हमारे अत्यन्त निकटवर्ती उदाहरण हैं। गायत्री माता की शरण में जाने वाले मनुष्य सदा लाभ में ही रहते हैं उन्हें आध्यात्मिक लाभों और साँसारिक सुविधाओं की कमी नहीं रहती।


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