जो केन्द्रीय गायत्री तीर्थ मथुरा में बन रहा है उसकी अपनी कुछ विशेषता रहेगी। लाखों मन्दिरों में एक की संख्या और बढ़ा देने से कुछ लाभ नहीं। इस तीर्थ को तो बनाना है जिसमें गायत्री की विशेष सत्ता की उपस्थिति प्रत्यक्ष अनुभव में आवे। जैसे बर्फखाने में प्रवेश करते ही ठण्ड मालूम पड़ती है और जलती हुई भट्टी के पास गर्मी अनुभव होती है वैसे ही उस तीर्थ में ऐसी चैतन्य शक्ति का अवतरण किया जाना चाहिये जिसको शाँति और सात्विकता का, प्रत्यक्ष अनुभव किया जा सके। ऐसा चैतन्य शक्ति केन्द्र बनाने में आपके विशेष सहयोग की आवश्यकता है। उस सहयोग को देकर आप अपना भी और समस्त संसार का भी भारी कल्याण करेंगे।
पूर्व युग में जब असुरों के उत्पात अत्यधिक बढ़ गये थे और देवताओं से उसका निवारण न हो सका तब ब्रह्माजी की सलाह से सब देवताओं ने अपनी थोड़ी-थोड़ी शक्ति एक केन्द्र पर एकत्रित की। उस सम्मिलित शक्ति केन्द्र से प्रचण्ड बल शालिनी सिंह वाहिनी दुर्गा पैदा हुई और जिन असुरों को वे देवता नहीं मार सकते थे उन्हें उस महाकाली ने अपनी विकराल शक्ति से चूर्ण विचूर्ण कर डाला। इसी प्रकार की एक घटना त्रेता में हुई थी। लंका के असुर अत्यधिक उत्पात करने लगे तो ऋषियों ने मिलकर एक योजना बनाई। सबने अपने शरीर से थोड़ा-थोड़ा रक्त निकाला और उसका एक घड़ा भरकर भूमि में गाढ़ दिया। कालान्तर में खेत जोतते समय राजा जनक को यह घड़ा सुन्दर बालिका के रूप में मिला। उस बालिका का नाम ‘सीता’ रखा गया और वे सीताजी ही आगे चलकर राक्षसों के कुल का विनाश करने का कारण बनी। उच्च आत्माओं का ब्रह्मबल एवं तप एक स्थान पर एकत्रित हो तो निश्चय ही उसका सम्मिलित केन्द्र अनन्त और प्रचण्ड शक्ति का उद्गम बन सकता है। आज भी असुरता के उत्पात कम नहीं हैं, हमारे भीतर, बाहर,चारों ओर असुरता का साम्राज्य छाया हुआ है, उसके कारण मनुष्य जाति नाना प्रकार के कष्टों से संत्रस्त हो रही है। उसका निवारण करने के लिये पूर्व काल के ऋषियों और देवताओं की भाँति ही सम्मिलित अध्यात्मिक प्रयत्न किये जाने की आवश्यकता होगी।
अनेकों तत्ववेत्ता और सूक्ष्मदर्शी आत्माओं की अभिमति यह है कि यदि 24 हजार सत्पुरुष चौबीस-चौबीस सौ गायत्री मन्त्र श्रद्धापूर्वक लिखें और वे सब एक स्थान पर एकत्रित हों तो इतनी विस्तृत साधना, भावना, श्रद्धा एवं तपश्चर्या का सम्मिलित केन्द्र गायत्री की सूक्ष्म चैतन्यता से इतना ओत-प्रोत हो सकता है वहाँ उपस्थित होने वाला मनुष्य उस महाशक्ति की सत्ता को इस स्थान पर प्रत्यक्ष अनुभव करे। ऐसे स्थान पर बैठने मात्र से लोगों की सद्बुद्धि बढ़ सकती है, और उस स्थान में की हुई साधना भी अपना विशिष्ठ परिणाम उपस्थित कर सकती है।
आप बन्धुओं के प्रयत्न और सहयोग से जो गायत्री मन्दिर मथुरा में बन रहा है वह ऐसा ही शक्ति सम्पन्न बने। इस आशा से यह प्रयत्न किया जा रहा है कि चौबीस हजार सत्पुरुष 24-24 सौ गायत्री मन्त्र लिखकर इस तीर्थ के लिए अपना आध्यात्मिक सहयोग प्रदान करें। यह कार्य कठिन और बहुत विस्तृत तो अवश्य है पर आप बन्धुओं के सहयोग और प्रयत्न से तथा माता की कृपा से पूरा हो सकता है। प्राचीन काल में आत्म कल्याण के लिये ऋषि मुनि त्याग और तपस्या से पीछे नहीं हटते थे और परमार्थ के लिए अपना शरीर तक छोड़ने को तैयार रहते थे। उस मार्ग पर यदि हमें भी चलना है तो थोड़ा बहुत त्याग और तप तो हमें भी करना ही होगा।
आप सम्भवतः गायत्री जयन्ती के अवसर पर 24 सौ मन्त्र लिख कर भेज चुके होंगे, या कुछ कम रहे होंगे तो उनको पूरा करने में लगे होंगे, अथवा अब लिख रहे होंगे। यदि अभी आरम्भ न किया हो तो अब आरम्भ कर दें। एक मिनट में एक मन्त्र बड़ी आसानी से लिखा जा सकता है, यदि 24 मिनट लगाकर 24 मन्त्र नित्य लिखे जायं तो वे सौ दिन में आसानी से पूरे हो सकते हैं। यदि अधिक समय लगाया जाय तो और भी जल्दी एवं अधिक संख्या में लिखे जा सकते हैं। मन्त्र जपने की अपेक्षा लिखने का पुण्य सौ गुना अधिक माना गया है। चौबीस सौ मन्त्र लिखने का पुण्य करीब सवा सवालक्ष के दो पुरश्चरण पूरे करने के बराबर हो जाता है। इतना कर लेना आत्म-शुद्धि एवं पुण्य परमार्थ की दृष्टि से एक बहुत बड़ा काम कर लेने की बराबर है।
हमें विश्वास है कि आप इस मन्त्र लेखन यज्ञ में सम्मिलित हो चुके हैं या होंगे पर इतने से ही काम न चलेगा। 24 हजार व्यक्तियों को तैयार करने का काम बहुत बड़ा है, इस संख्या में शेष कुछ की पूर्ति आपको भी करनी है। अपने निकटवर्ती धार्मिक प्रवृत्तियों के लोगों में आप गायत्री की महिमा उसके मन्त्र लेखन का महत्व, चैतन्य तीर्थ की आवश्यकता समझावें तो थोड़े बहुत सत्पुरुष इस पुण्य कार्य में सहयोग देने के लिए तत्पर अवश्य हो सकते हैं। क्या आप दो-चार व्यक्तियों को भी इस कल्याणकारी कार्य के लिए तत्पर नहीं कर सकते हैं।
धार्मिक प्रवृत्ति के और साधना पूजा में निष्ठा रखने वाले कुछ ऐसे सज्जनों के पूरे पते आप हमें भी लिख भेजें जो आपसे दूर रहते हों या जिन तक आपकी पहुँच न हो सकती हो। उन पतों पर हम यहाँ से इस “मन्त्र लेखन यज्ञ”में सम्मिलित होने के लिए प्रेरणा पत्र भेजेंगे। अपने निकटवर्ती लोगों के उन सज्जनों के पते भेजने की जरूरत नहीं है जिन तक आप स्वयं पहुँच सकते हैं।
मंत्र लेखन के नियम बड़े सरल हैं कोई भी द्विज स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध उसमें प्रसन्नता पूर्वक भाग ले सकती हैं। स्कूली कापी साइज की कापियों पर सुबोध अक्षरों में शुद्धतापूर्वक मंत्र लिखने चाहिए। स्याही या कलम का कोई प्रतिबंध नहीं है। साधारणतः एक व्यक्ति से 2400 मंत्र लिखने की अपेक्षा की जाती है। जो अधिक लिख सकते हों वे प्रसन्नता पूर्वक अधिक लिखें। रोगी, असमर्थ, वृद्ध, कम पढ़े, या कार्य व्यस्त लोग अपनी स्थिति के अनुसार एक हजार या कम से कम 240 मंत्र लिख सकते हैं। पूरे हो जाने पर इन्हें रजिस्ट्री बुक पोस्ट से “अखण्ड ज्योति प्रेस, मथुरा” के पते पर भेज देना चाहिए।
कापी के आरम्भिक पृष्ठ पर अपना नाम, पूरा पता, शिक्षा, आयु, वर्ण, व्यवसाय, परिवार तथा अब तक के जीवन का संक्षिप्त वृत्तांत भी लिखना चाहिए और यदि संभव हो तो फोटो भी भेजा जाय। कारण यह है कि सम्भवतः गायत्री संस्था की ओर से देश भर के गायत्री उपासकों का एक विस्तृत सचित्र परिचय एवं इतिहास ग्रन्थ छपेगा उसमें इन सब बातों का उल्लेख होगा।
सम्भव हो तो मन्त्रों की पुस्तक जिल्द बनाकर भेजनी चाहिये। वैसे न हो सके तो जिल्दें यहाँ बनायी जायेंगी और उनको मन्दिर के समग्र कक्ष में सुन्दर रीति से सुसज्जा के साथ हजारों वर्षों तक सुरक्षित रखा जायगा और उनका नित्य पूजन होता रहेगा। आपका यह परम पुनीत आध्यात्मिक स्मारक ऐसे स्थान पर अवस्थित होगा जहाँ का सूक्ष्म पुण्य प्रभाव आपकी आत्मा तक निरन्तर पहुँचता रहेगा।
आश्विन मास की विजयादशमी पर आपकी यह श्रद्धांजलि अर्पित की जा सके तो बहुत ही उत्तम है। वैसे आप अपनी सुविधानुसार उससे आगे पीछे अथवा न्यूनाधिक संख्या में भी भेज सकते हैं। यदि आप कुछ मन्त्र लिखकर भेज चुके हैं तो भी और अधिक मंत्र लिखने के लिए पुनः प्रयास आरम्भ कर सकते हैं। “अधिकस्य अधिकं फलम्”।