गायत्री की महान महिमा

July 1952

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गायत्र्या परमं नास्ति दिवि चेह न पावनम्।

हस्तत्राणप्रदादेवी पतताँ नरकार्णवे॥

नरक रूपी समुद्र में गिरते हुए को हाथ पकड़ कर बचाने वाली वस्तु या मन्त्र पृथ्वी पर तथा स्वर्ग में भी नहीं है।

बहुना किमिहोक्तेन यथावत् साधु साधिता।

द्विजन्मानामियं विद्या सिद्धा कामदुधास्मृता॥

यहाँ पर अधिक कहने से क्या लाभ? अच्छी प्रकार सिद्ध की गई यह गायत्री विद्या द्विज जाति की कामधेनु कही गयी है।

या नित्या ब्रह्मगायत्री सैवगंगा न संशयः।

सर्व तीर्थमयी गंगा तेन गंगा प्रकीर्तिता॥

गायत्री तंत्र

गंगा सर्व तीर्थ मय होने से ‘गंगा’ कहलाती है। वह गंगा ब्रह्म गायत्री का ही रूप है।

गायत्री तु परित्यज्य अन्य मंत्रमुपासते।

सिद्धान्नं च परित्यज्य भिक्षामटति दुर्मति।

जो गायत्री को छोड़ कर दूसरे मन्त्रों की उपासना करता है वह दुर्बुद्धि पुरुष पकाये हुए अन्न को छोड़ कर भिक्षा के लिए घूमने वाले पुरुष के समान है॥42॥

नित्यनैमित्ति के काम्ये तृतीये तप वर्धने।

गायत्र्यास्तु परं नास्ति इहलोके परत्र च ॥2॥

नित्य, नैमित्तिक, काम्य की सफलता तथा तप की वृद्धि के लिए इस लोक तथा परलोक में गायत्री से बढ़कर कोई नहीं है।

सर्व वेद सारभूता गायत्र्यास्तु समर्चना।

ब्रह्मादयोऽपि संध्यायाँ ताँ ध्यायन्ति जपन्ति च॥

दे. भा. कं. 16 अ. 16।15

गायत्री मन्त्र का आराधन समस्त वेदों का सारभूत है। ब्रह्मादि देवता भी सन्ध्या काल में गायत्री का ध्यान करते हैं और जप करते हैं।

कुर्यादन्यन्न वा कुर्यादनुष्ठानादिकं तथा।

गायत्री मात्र निष्ठस्तु कृतकृत्यो भवेद्विजः॥

गायत्री तंत्र। 8

अन्य अनुष्ठानादि करे या न करे, गायत्री मात्र की उपासना करने वाला द्विज कृतकृत्य हो जाता है।

मोक्षय च मुमुक्षूणाँ श्रीकामानाँश्रियेप्तदा।

विजयाय युयुत्सूनाँ व्याधि नानामरोगकृत्॥1॥

गायत्री पंचांग 1

गायत्री साधना से मुमुक्षुओं को मोक्ष मिलेगा, श्री कामियों को श्री का युद्धेच्छुओं को विजय तथा व्याधि ग्रस्तों को निरोगता प्राप्त होगी।

य एताँ वेद गायत्रीं पुन्याँसर्वगुणान्विताम्।

तत्वेन भरतश्रेष्ठ! स लोके न प्रणश्यति॥

महा भा. भीष्म प. अ. 14।16

हे युधिष्ठिर! जो मनुष्य तत्व पूर्वक सर्वगुण सम्पन्न पुण्य गायत्री को जान लेता है। वह संसार में दुखित नहीं होता है।

गायत्री रहितो विप्रः शूद्रादप्य शुचिर्भवेत्।

गायत्री ब्रह्म तत्वज्ञः सम्पूज्यस्तु द्धिजोत्तमः॥

गायत्री से रहित ब्राह्मण शूद्र से भी अपवित्र है। गायत्री रूपी ब्रह्म तत्व को जानने वाला द्विज सर्वत्र पूज्य है।

एवं यस्तु विजानाति गायत्री ब्राह्मणस्तुसः।

अन्यथा शूद्र धर्मस्याद्वेदानामपि परागः॥

यो. याज्ञ.

जो गायत्री को जानता है और जपता है वह ब्राह्मण है अन्यथा वेदों में पारंगत होने पर भी शूद्र के समान है।

किं वेदैः पठितैः सर्वैः सेतिहास पुराणकैः।

साँगैः सावित्र हीनेन न विप्रत्वमवाप्नुयात्॥

इतिहास पुराणों के तथा समस्त वेदों के पढ़ लेने पर भी यदि ब्राह्मण गायत्री मन्त्र से हीन हो तो वह ब्राह्मणत्व को नहीं प्राप्त होता है।

वर्ष -13 सम्पादक - श्रीराम शर्मा आचार्य अंक- 7


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