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July 1952

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—सभी दंड से डरते हैं सभी को मृत्यु से डर लगता है और सभी को जीवन प्रिय है, इसलिये सभी को अपना जैसा समझो, न किसी को मारो न किसी को मरवाओ।

—पानी ले जाने वाले पानी ले जाते हैं। बाण चलाने वाले बाण बनाते हैं। बढ़ई लकड़ी बनाते हैं और सुब्रती जन अपना दमन करते हैं।

—यह सब कुछ जल रहा है पर तुम्हें आनन्द और हँसी सूझ रही है? अन्धकार से घिरे रह कर भी तुम प्रदीप को क्यों नहीं खोजते?

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