माता द्वारा प्राण भिक्षा का दान

July 1952

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री वीरेन्द्र स्वरूप भटनागर बरेली)

मेरे जीवन में अभी हाल में एक ऐसी घटना घटी है जिसका स्मरण करने मात्र से मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

मार्च सन् 51 में मेरी दाहिनी हसली के ऊपर एक फोड़ा उठा। बरेली, डिस्ट्रिक्ट अस्पताल में मुझे भरती किया गया। अनेक इंजेक्शनों तथा दवाओं के बावजूद फोड़ा बढ़ता गया। दो महीने मेरी हालत बहुत ही नाजुक हो गई। ता. 14 ई 51 को फोड़ा फटा। काफी मवाद निकला। साथ ही हसली की हड्डी भी टूट गई। इस समय मेरी हालत मृतक जैसी हो गई थी। देह पर सब ओर मुर्दनी छा गई थी।

माता पिता का धैर्य टूट गया। वे बिलख बिलख कर रोने लगे। रिश्तेदारों को तार द्वारा खबर दी गई, वे भी मुझे अन्तिम रूप से देखने आ गये। सिविल सर्जन स्पष्ट कह चुके थे कि मर्ज उनके काबू से बाहर है यदि जिन्दगी बच भी जाय तो हसली की हड्डी टूट जाने के कारण दाहिना हाथ बिलकुल बेकार हो जायगा। मृतक या कम से कम अपाहिज होने की कल्पना रोगी को तथा उसके अभिभावकों को कितनी कष्ट कारक होती है इसकी कल्पना कोई भुक्त भोगी ही कर सकता है।

इस विपत्ति के घोर अन्धकार में पिता जी को गायत्री माता का सहारा सूझा। वे दिन रात गायत्री का जप और ध्यान करते और उसी से मेरे प्राणों की भिक्षा माँगते, इसी बीच उन्हें मुझे लखनऊ ले जाने का उपाय सूझा। यद्यपि ऐसी स्थिति में रोगी के लिए इतनी लम्बी यात्रा खतरे से खाली न थी पर वे अपनी अन्तः प्रेरणा के अनुसार मुझे लखनऊ ले पहुँचे और मेडीकल कॉलेज के अस्पताल में भर्ती कर दिया। डॉक्टर इलाज करते थे और माता पिता गोमती नदी के पुण्य तट पर गायत्री के सवालक्ष अनुष्ठान में संलग्न रहते।

माता ने उनकी आर्तपुकार को सुना और मेरा आपरेशन सफल हुआ। हसली की हड्डी निकाल दी गई है, फिर भी मेरा दाहिना हाथ अपाहिज नहीं हुआ और माता की असीम कृपा के अतिरिक्त और क्या कहा जाय?

पिता जी आर्य समाजी विचार के हैं। उनका अब गायत्री पर इतना अटूट विश्वास हो गया है कि अपना अधिकाँश खाली समय वे गायत्री उपासना में ही लगाते हैं। मैं भी अपनी जीवनदात्री महाशक्ति को कैसे भूल सकता हूँ। मैं भी यथासम्भव गायत्री उपासना में भूल नहीं करता और विश्वास करता हूँ कि जो शक्ति इतना बड़ा संकट टाल सकती है उसके लिए किसी भी कठिनाई को दूर कर सकना कठिन नहीं है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118