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July 1952

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—इन्द्रिय सुख को ढूँढ़ते हुए मैं अनेक जन्मों तक लगातार संसार में दौड़ता रहा, बार-बार जन्म लेना दुख है। हे अज्ञान तू-दिखाई दे गया। अब फिर तू नहीं फंसा सकेगा। तेरी सब कड़ियाँ टूट गई, घर का शिखर बिखर गया। चित्त संस्कार हित हो गया। तृष्णाओं का क्षय हो गया।


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