भयंकर अभियोग से निर्दोष मुक्ति

July 1952

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री नारायण प्रसाद काश्यप, राजनाँदगाँव)

आज मैं आप लोगों को गायत्री—की आध्यात्मिक महिमा और शक्ति के विषय में कुछ नहीं कहना चाहता क्योंकि उसके विषय में बहुत कुछ कहा और लिखा जा चुका है। आज मैं अपने निजी अनुभव की बातें बतलाऊँगा कि जिस तरह गायत्री मन्त्र की शक्ति के द्वारा हमारे घर की सब विघ्न बाधाएँ और आपत्तियाँ दूर हुई।

सन् 1946 में भण्डारे के एक प्रमुख व्यक्ति ने मेरे बड़े भाई को एक बनावटी फौजदारी मुकदमे में फँसा दिया। मुकदमा चार वर्ष तक चलता रहा अफसरों पर दबाव डाल कर वह हम लोगों को बरबाद करना चाहता था। हमने अपनी विपत्ति कथा सतगुरु स्वामीनाथ तथा ब्रह्मचारी जी को कह सुनाई। उनने हमें आश्वासन दिया और गायत्री जप करने के लिए कहा। और श्री ब्रह्मचारी जी ने स्वयं विधिपूर्वक अनुष्ठान किया और मुझे एक अनुष्ठान बतलाया जिसे मैंने चार बार में समाप्त किया। इस अनुष्ठान के प्रताप से वह विपत्ति टल गई जिसके कारण हम लोगों को बहुत ही भय सताता रहता था।

सन् 1951 के जनवरी माह में कुछ बड़े आदमी पुलिस से मिलकर मेरे छोटे भाई पर कत्ल करने का मामला चलाया। हमारे परिवार पर वज्रपात हो गया। एक के बाद दूसरी विपत्ति पर विपत्ति आ गई। हमने इस मामले को अपने गुरुजनों के सामने रखा। इस बार भी माता का ही अंचल पकड़ा गया वही तरण तारणी है। उसे छोड़कर और किसका अंचल पकड़ा जाय। माता की कृपा हुई। गुरुजनों ने तथा हमने माता की निरन्तर प्रार्थना को ही अपना सहारा बनाया।

हम दिन रात गायत्री मन्त्र का ही जप करते थे। उसका यह परिणाम हुआ कि आज हमारे दोनों भाई निर्दोष मान कर रिहा कर दिये गये और मेरे छोटे भाई को फँसाने वाला वह आदमी उलटा एक मामले में गिरफ्तार है।

अन्त में मैं अपने निजी अनुभव के द्वारा अपने सब पाठकों से प्रार्थना करता हूँ कि वे भी रोज गायत्री मन्त्र का जप किया करें।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles