(श्री रामचन्द्र प्रसाद जी दानापुर केन्ट)
भागवत जी मिस्त्री हमारी दुकान के पड़ोस में ही रहते हैं। वे जाति के लुहार हैं। इनके पिता गरीवा मिस्त्री बड़े गुणी थे, इनके पूर्वज भी ओझा होते आये हैं। इनके घर में लगभग सौ वर्ष से एक बैमत (स्त्री प्रेतात्मा) रहती थी। जिसे भगाने का इनके पूर्वज भी जी तोड़ प्रयत्न करते रहे और इनने भी किया पर किसी प्रकार सफलता न मिली। यह बैमत (चुड़ैल) घर में किसी न किसी प्रकार परेशान करती रहती थी। इसे हटाने के सभी प्रयत्न निष्फल हो गये थे। भागवत जी के चचा कपूर चंद मिस्त्री भूत विद्या के बारे में बड़े अनुभवी हैं इनने तो यहाँ तक कह दिया था कि अब इस बैमत को दुनिया में कोई मनुष्य नहीं हटा सकता। निराशा और परेशानी से सबका चित्त बड़ा दुखी रहता था।
मैंने भागवत जी को गायत्री अनुष्ठान करने की सलाह दी। वे कठिन से कठिन साधना करने को तैयार थे। गायत्री उपासना के लिये प्रसन्नतापूर्वक तैयार हो गये। मैंने उन्हें सारा विधि विधान समझा दिया। वे 40 दिन की साधना में लग गये। इस साधना को भंग करने के लिए वैमत ने ऐसे ऐसे उपद्रव खड़े किये कि यह लगता था कि यह इस साधना को पूरा न होने देगी, बीच में ही खंडित करके मानेगी। पर साधना किसी प्रकार चलती ही रही।
एक दिन भागवत जी ने अपनी आँखों देखा और कानों सुना कि कोई औरत छप्पर पर बैठी हुई जोर जोर से रो रही है और कह रही है कि— “मैं इतने दिन से इस घर में हूँ, मुझे मत निकालो, तुम भी रहो और मुझे भी रहने दो।” इसी प्रकार एक दिन उनके साधना स्थान से कुछ दूर एक काले रंग की भयंकर प्रेतात्मा घबराई हुई दशा में घूमते देखी। और भी अनुभव उस अनुष्ठान काल में हुए जिससे यह प्रकट होता था कि गायत्री उपासना का भारी असर उस बैमत (प्रेतात्मा) पर हो रहा था।
अनुष्ठान पूरा हुआ। गायत्री यज्ञ का धुँआ घर के कौने-कौने में पहुँचाया गया। सब लोगों ने माता की पूजा में भाग लिया, यज्ञ की भस्म माथे पर लगाई। उस दिन के बाद वैमत का कोई उपद्रव उनके घर में नहीं हुआ, जिससे विश्वास होता है कि अब उनके घर में कोई भूत बाधा नहीं रही। जिस घर में गायत्री उपासना होती है उस घर में भूत पिशाच जैसी मलीन आत्माएँ रह नहीं सकतीं, ऐसे घरों में तो देव वास ही रहता है।