(श्री रंगनाथ नाना जी बराडे, फैजपुर)
मेरे बीस वर्षीय पुत्र शान्ताराम की मृत्यु हो जाने के उपरान्त चित्त की स्थिति बड़ी अस्थिर रहने लगी थी, साँसारिक कार्यों से उदासीनता हो रही थी, पर आध्यात्मिक मार्ग पर चलने के लिए कोई उपयुक्त पथ प्रदर्शन नहीं मिल रहा है। इसी विषम स्थिति में मेरा संपर्क अखण्ड ज्योति से हुआ, व्यावहारिक पथ प्रदर्शन से साधन में मेरी रुचि, श्रद्धा और अन्तः प्रेरणा बढ़ी और में बताये हुए मार्ग से उपासना करने लगा।
योग का विषय बड़ा गम्भीर है। उसमें अनेक बार बड़े बड़े विद्वानों की गम्य नहीं पहुँचती; और योगी यती तक चक्कर में पड़ जाते हैं, फिर मेरे जैसे अल्प बुद्धि वाले व्यक्ति के लिए वह और भी कठिन है। परन्तु प्रभु की कृपा का महत्व बहुत है। उनकी कृपा से लघुता में भी परमगति का प्रसाद मिल सकता है।
मैंने गायत्री माता का अंचल पकड़ा। अखंडित अविरल धारा में जप करने से चैतन्य शक्ति का अनुभव हुआ। उस चैतन्य शक्ति के आँगन में खेलते रहने से अनेकों समझ में न आने वाली बातें स्वयमेव समझ में आ रही हैं। नील वर्ण की धारणा का दृढ़ निश्चय कर लेने से मनुष्य उस शक्ति का आकर्षण कर प्रकर्षक कर सकता है इस तथ्य की जानकारी प्राप्त हो रही है।
प्रत्यक्षतः योगिक क्रियाओं का साधन करने में सामान्य मनुष्य की शक्ति बहुत कम पड़ती है। साधना समर में विजय प्राप्त करना तलवार की धार पर चलने के समान कठिन है। इस मार्ग का ठीक पथ प्रदर्शन प्राप्त न हो तो भयंकर परिणाम होने की आशंका रहती है। परन्तु आश्चर्य की बात है कि इन गुप्त रहस्यों का पथ प्रदर्शन, गायत्री उपासक के लिये बहुत सरलता से उपलब्ध हो जाता है।
इन थोड़े ही दिनों के साधन में नासाग्र दृष्टि, भू मध्य दृष्टि, इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना, आज्ञाचक्र, ज्ञानेन्द्रियों के उद्गम केन्द्र, सहस्रदल कमल, अनाहत ध्वनि, आदि का साधन किस प्रकार होना चाहिए, उसमें जो कड़ी बाधाएं हैं और उनका सुलझाव किस प्रकार हो सकता है, यह सब बातें इतनी स्पष्ट दृष्टि गोचर होती है मानों कोई दिव्य पुरुष एक एक करके भली प्रकार समझा रहा हो और उनको क्रियात्मक रूप से करके दिखा रहा हो।
में सुनता रहता हूँ कि गायत्री उपासना से मनुष्य को आत्मिक उन्नति में बहुत शीघ्र सफलता मिलती है। अब उसका कारण भी मेरी समझ में आ गया। अन्य मार्गों से साधना करने में सही पथ प्रदर्शन ढूँढ़ने और प्राप्त करने में ही बहुत भारी शक्ति व्यय करनी पड़ती है पर गायत्री उपासना में वह सब अनायास ही प्राप्त हो जाती है। यही कारण है कि इस मार्ग के पथिक, अन्य मार्गों की अपेक्षा अधिक शीघ्र निर्धारित लक्ष तक पहुँच जाते हैं।
प्राप्त हुए पथ प्रदर्शन पर यदि इस शरीर से अमल बन पड़ा तो यह असम्भव नहीं कि मुझ जैसा तुच्छ व्यक्ति भी उस दिव्य महान तत्व का भागीदार बन सके।