मंगलमय हो यह पुण्य उदय (Kavita)

July 1952

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भूरी किरणों की डोरी से अम्बर से भू पर उतर उतर,

मुखरित नीड़ों करते हैं गिरते पड़ते तारों के स्वर,

कलियाँ अपनी उर-प्याली में करती मधु सौरभ का संचय!

मंगलमय हो यह पुण्य उदय!

सर के सरिता के सूने तट

हो गये निनादित मृदु पनघट, भर-भर कर भावों के संपुट,

हो गये बन्द रजनी के पट,

मिलने वाले मिल गये, दूर हो गया मुग्ध अलिदल का भय!

मंगलमय हो यह पुण्य उदय!

नूतन आशाओं ने गति दी निश्चय ने पथ निर्माण किया,

अम्बर ने शत-शत हाथों से, बिखरा भू पर वरदान दिया,

कितनी मंगलमय हुई, तिमिर पर प्रिय प्रकाश की दिव्य विजय!

मंगलमय हो यह पुण्य उदय!

(श्रीमती विद्यावती मिश्र)


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