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July 1952

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थोड़े सुख के परित्याग से यदि बहुत सुख की प्राप्ति होती दिखाई दे तो बुद्धिमान को चाहिए बहुत सुख के लिए थोड़े सुख को त्याग दे।

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सत्पुरुष हिमालय पर्वत की तरह दूर से प्रकाशित होते हैं, और असत्पुरुष रात में फेंके बाण की तरह दिखाई नहीं देते।

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जो फटे पुराने वस्त्रों को धारण करता है, जो पतला दुबला है, जिसकी नसें दिखाई देती हैं, जो वन में अकेला ध्यान करता है, वह ब्राह्मण है। ब्राह्मणी माता से पैदा होकर कोई ब्राह्मण नहीं होता।

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जिसके पास कुछ नहीं है, जो अक्रोधी है, व्रती है, सदाचारी है, घृणा रहित है, वे ही ब्राह्मण हैं। कमल के पत्ते पर बूँद की तरह जो काम भोगों से अलिप्त है, वही ब्राह्मण है। जो गम्भीर प्रज्ञावाला है, जो मेधावी है, जो मार्ग कुमार्ग को पहचानता है, जो असंग्रही है, वह ब्राह्मण है।


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