ईसा कहते थे- “तुम मुझे प्रभु कहते हो, गुरु कहते हो, उत्तम कहते हो, मेरी सेवा करना चाहते हो और मेरे लिये सब कुछ बलिदान कर देने को तैयार रहते हो। किन्तु मैं तुमसे फिर कहता हूँ, तुम मेरे लिये न कुछ करते हो और न करना चाहते हो।”
“तुम जो कुछ करना चाहते हो, मेरे लिए करना चाहते हो जबकि मैं चाहता हूँ तुम औरों के लिए ही सब कुछ करो। औरों के लिए कुछ न करने पर तुम मेरे लिए भी कुछ न कर सकोगे। मैं तुमसे सच कहता हूँ कि यदि तुमने इन छोटों के लिए कुछ न किया तो मेरे लिए भी कुछ न किया।”
“मैं फिर कहता हूँ कि मुझे प्रसन्न करने का प्रयत्न मत करो, मेरी प्रसन्नता तो इन छोटे और गरीब आदमियों की प्रसन्नता है। मुझे प्रसन्न करने के स्थान पर इनको प्रसन्न करो, मेरी सेवा की जगह इनकी सेवा और सहायता करो। यदि तुम सच्चे मन से प्रभु की प्रार्थना नहीं करते, तो तुम्हारा प्रार्थना में खड़ा होना ठीक वैसा ही है, जैसे ग्वाले के डण्डे से घेरी हुई भेड़ें बाड़े में खड़ी हो जाती हैं।’’