भगवान महावीर आत्म संयम की साधना में उन दिनों लीन थे। उन्हें उद्विग्न करने के लिए संगम नामक एक दुष्ट पीछे पड़ा हुआ था। आये दिन वह उन्हें क्षुब्ध करने के लिए कुछ न कुछ कुचक्र रचता रहता।
एक दिन उसने खौलता दूध उनके ऊपर उलट दिया। जो भी वे अविचल भाव से अपनी साधना में निरत रहे।
संगम पिघला। वह अपने कुकृत्यों पर आंसू बहाता क्षमा माँगता विदा होने लगा।
भगवान की आँखें भी नम हो गई। वे बोले- तात् इन कुकृत्यों का दुष्परिणाम तुम्हें कितना कष्टकारक होगा, यही सोचकर मुझे व्यथा हो रही है। दूध से जलने पर उठे हुए फफोले देखकर नहीं।
** ** ** **