मनुष्य का हृदय धड़कता है और उस आधार पर समस्त शरीर में रक्त संचार एवं गतिशीलता का माहौल बनता है। धड़कन बन्द हो जाने पर शरीर की मृत्यु सुनिश्चित है।
ब्रह्मांड को भी ईश्वर का विराट रूप माना गया है। उसका भी कोई हृदय हो चाहिए। यह धड़कन वैज्ञानिकों ने सुनी है और उसे किसी तारे से आने क कल्पना छोड़कर यह स्वीकार किया है कि यह ब्रह्मांड की हृदय धड़कन है।
पृथ्वी पर अन्तरिक्ष से कुछ क्रमबद्ध रेडियो संकेत आते रहते हैं। उनके सम्बन्ध में कोई अनुमान लगाये जाते हैं जिनमें से एक यह भी है कि किसी विकसित सभ्यता वाले लोकवासी पृथ्वी के साथ सम्बन्ध सूत्र जोड़ने के लिये यह आदान-प्रदान संकेत भेजते हैं।
अब उनके सम्बन्ध में अधिक जानकारी मिली है और प्रतीत हुआ कि पलसार्स तारों से एक विशेष प्रकार के शक्तिशाली रेडियो बौछार होती है। वही इन वीप-वीप संकेतों के रूप में धरती तक आते-आते बदल जाती है। इतनी सशक्त रेडियो बौछार का समीपवर्ती क्षेत्र में और कोई उद्गम स्त्रोत है नहीं।
यह पलसार्स तारे क्या हैं? इनका विवेचन करते हुए अन्तरिक्ष विशेषज्ञों ने इनकी संरचना अद्भुत बताई है। वे कहते हैं जब कोई तारा जीर्ण होकर मरणासन्न होता है तब उसका विस्तार सकुड़ते-सकुड़ते अत्यन्त सघन हो जाता है। विशाल विस्तार थोड़े से में सिमट जाता है। सूर्य अपनी पृथ्वी से 330,000 गुना भारी है। यदि इसकी ऊर्जा समाप्त हो जाय तो वह पिचककर मात्र दस किलोमीटर व्यास का गोला बन जायेगा। इतने पर भी उसका भार उतना ही बना रहेगा जितना अब है। सभी मरणासन्न तारों की यही स्थिति होती है।
इस सिकुड़न में जहाँ विस्तार कम होता है वहाँ उनकी रेडियो धर्मिता असंख्य गुनी बढ़ जाती है और वह समूचे ब्रह्मांड में फैलने लगती है। दूरी के हिसाब से जो ग्रह जितने समीप होते हैं वे उस विकिरण से उतने ही अधिक प्रभावित होते हैं। दूरी बढ़ते जाने पर प्रभाव घटते जाना स्वाभाविक है।
रुक-रुक कर विकिरण धरती पर आने से लगता है ब्रह्मांड का दिल धड़कता है। मनुष्य का हृदय जिस तरह धक-धक करता रहता है उसी प्रकार क्रमबद्ध रूप से इन संकेतों पर ध्यान केन्द्रित करने पर लगता है कि ब्रह्मांड शरीर का कोई हृदय केन्द्र है और वहाँ यह धड़कन जैसी हलचल होती है। इस मान्यता की संगति इसलिए और भी अधिक अच्छी तरह बैठ जाती है कि प्रकृतिगत हलचलों के पीछे भी किसी पेण्डुलम गति को काम करते समझा जाता है। घड़ी हलचल पेण्डुलम क्रम पर आधारित है। हृदय की धड़कन को भी पेण्डुलम व्यवस्था माना जाता है। ब्रह्मांड का क्रम भी इसी आधार पर चल रहा हो तो क्या आश्चर्य?
इस पलसार्स समूह में एक विलक्षण है इसका नाम 153 रखा गया है। यह अपने स्थान पर अवस्थित है। अन्य साथियों की तरह अपनी धुरी पर घूमता नहीं। और बौछार का सतत् क्रम चलाता है। जब कि अन्य धुरी पर घूमने के कारण जब ध्रुव केन्द्र सामने होने पर ही पृथ्वी की ओर बौछार पहुँचा पाते हैं। इस समुदाय का एक ही स्थिर क्यों हैं इसके बारे में कहा जाता है कि यह पिछले ब्रह्मांड का बचा-खुचा अवशेष है जो किसी प्रकार किसी कोने में महाप्रलय और महासृजन की चपेट में आने से बच गया है।