वस्तुतः ईश्वर के प्रति दृढ़-निष्ठा, उसके अनुशासनों को मानते हुए जीवन में परिवर्तन लाना ही सच्ची आस्तिकता है।
जरथुश्त्र बादशाह गुश्तास्प के दरबार में पहुंचे। उन्हें ईश्वर निष्ठ जीवन जीने का सन्देश दिया। राजा ने कहा- ‘‘मैं तो सामान्य ज्ञान रखता हूं, यदि आप हमारे दरबार के विद्वानों का समाधान कर दें तो मैं आपके निर्देश पूरी तरह मानूँगा।’’
जरथुश्त्र ने विद्वानों के कठिन प्रश्नों के समाधान बड़े ढंग से तत्काल दिए। वे सभी अत्यन्त प्रभावित हुए। शहंशाह ने कहा- ‘‘आप धन्य हैं।’’ वस्तुतः ऐसे उत्तर परमात्म ज्ञान से सम्पन्न व्यक्ति ही दे सकता है।
बादशाह ने उन्हें सम्मानित किया और कहा- आप कोई चमत्कार दिखायें, हम सब आपके अनुयायी बनेंगे। जरथुश्त्र ने हाथ की पुस्तक दिखाते हुए कहा- यह अवस्था (ईश्वरीय ज्ञान) ही सबसे बड़ा चमत्कार है, जो लाखों को नयी दृष्टि देता है। इसके अलावा लोगों की आंखों में चकाचौंध पैदा करने वाले किसी चमत्कार के लिए ईश्वरीय धर्म में कोई स्थान नहीं है। बादशाह अपनी बाल-बुद्धि के लिए क्षमा माँगी और शिष्यत्व ग्रहण किया।