अन्धा मनुष्य सर्प की आशंका से गले में डाली गयी पुष्प माला को भी उतार फेंकता है। अविवेकी लोग सत्परामर्श को भी घाटा पहुँचने की आशंका से उपेक्षापूर्वक अनसुनी कर देते हैं।
स्वेच्छा पूर्वक अपनाई गई दरिद्रता मनुष्य को महामानव बनाती है, किन्तु आलसी के ऊपर लदी हुई दरिद्रता उसकी अकर्मण्यता का स्वाभाविक दुष्परिणाम है।
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