अहंकार का उन्माद (Kahani)

October 1985

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एक छोटी नदी थी। पार जाने के लिए एक लम्बा लट्ठा उसके आर-पार रखा था। उस पर एक के निकलने जितनी ही जगह थी।

एक दिन दो बकरे दो ओर से एक ही समय चले पड़े और बीच में आकर अड़ गये। न किसे ने पहले सोचा और न परिस्थिति की विषमता देखकर पीछे हटने का विवेक अपनाया।

अड़े सो अड़े। हेटी कोन कराये? घमण्ड कौन छोड़े? पीछे हटने और जान बचाने की बात, सोचने की बात, कौन सोचे? लड़ने मरने और दूसरे को नीचा दिखाने के उन्माद में परस्पर टकराने लगे। छोटे बकरे के बाद बड़ा गिरा और दोनों ही नदी के प्रवाह में पड़कर मौत के मुँह में चले गये। अहंकार का उन्माद, जो न कर गुजरे, सो कम ही है।


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