विज्ञान के लिए भारी शोध कार्य करने को पड़ा है।

October 1985

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प्रकृति के अगणित रहस्यों में से मनुष्य के हाथ अभी थोड़े से ही लग पाये हैं। यहाँ तक कि जिस सूर्य ऊर्जा के मध्य हम जीवन यापन करते हैं, उसका भी समुचित मात्रा में उपयोग सीख नहीं पाये हैं। अन्यथा ईंधन और ऊर्जा का जो संकट सामने खड़ा है उसका अब से बहुत पहले ही समाधान हो गया होता।

भूत और भविष्य की घटनाओं का प्रत्यक्ष दर्शन करना यों आज सर्वसाधारण के लिए सम्भव नहीं। कोई योगी सिद्ध पुरुष ही उस संदर्भ में कुछ बता सकते हैं। नर का यदि सुदूर नक्षत्रों तक पहुंच सकना किसी प्रकार सम्भव हो सके तो वहाँ से वे सारे दृश्य प्रत्यक्ष देखे जा सकते हैं जिन्हें हम आज चिर अतीत कहते हैं।

1971 में रूस और अमेरिका ने मिलकर एक संस्था का गठन किया, जिसे ‘‘सोवियत अमेरिकन कांग्रेस आन एण्स्ट्रा टेकिस्टेरियस लाइफ’’ के नाम से सम्बोधित किया जाता है। यह संस्था अमेरिका के ‘ब्यूराकन’ प्रदेश में गठित हुई है।

इस संस्था ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि आकाश गंगा में ही पृथ्वी जैसी विकसित सभ्यता 1 लाख आकाशीय पिंडों में होने की सम्भावना है। इस सम्भावना की बात तय होने पर वैज्ञानिकों में यह जानकारी प्राप्त करने की उत्सुकता हुई कि वहाँ के लोग कैसे रहते होंगे आदि। आकाशीय पिण्डों की अति दूरी को ध्यान में रखते हुए संचार माध्यम केवल “रेडियो सिगनल” ही हो सकते हैं। ऐसा निश्चय होने के उपरान्त खगोल विद्या-विदों एवं अन्य वैज्ञानिकों ने सेटी (एस. ई. टी. ई.) -सर्च फार एक्स्ट्रा टेरिस्टेरियल इन्टेलीजेन्स) नामक संस्था गठित की। कई वर्षों से आकाश में ‘रेडियो सिगनल’ भेजे जा रहे हैं और प्रत्येक आकाशीय पिण्ड की रेडियो एक्टीविटी मालूम करके उनका नक्शा बनाया जा रहा है। इस कार्य की जटिलता के बारे में सेटी के पायोनियर (अग्रगामी) डॉ. फ्रैन्क डो. ड्रेक कहते हैं- ‘यह कार्य उस सुई को ढूँढ़ने के समान है जो विशाल घास के ढेर में खो गई है।’

प्रसिद्ध डच भूगर्भ शास्त्री प्रो. सोल्को डब्लू. ट्राम्प ने ‘साइकिल फिजिक्स’ पुस्तक में विभिन्न प्रयोग परीक्षण करके यह लिखा है कि पृथ्वी अगणित विशेषताओं और धाराओं से भरे-पूरे चुम्बकत्व से भरी-पूरी है। वैज्ञानिक उपलब्धियों में प्रकारान्तर से इसी क्षमता के स्रोतों को खोजा और प्रयोग में लाया गया है। इसका समर्थन (फ्रेन्च एटॉमिक एनर्जी कमीशन’ के सदस्य ‘इकोले नारमल और अमेरिका के सुरक्षा-विभाग एवं अर्कन्सास विश्व विद्यालय के डा. जाबोज हारबलिक ने भी किया है। डा. जाबोज ‘अमेरिकन सोसायटी आफ डाइसर्स’ के प्रमुख हैं।

अन्य ग्रहों तारकों तक पहुँचने के लिए अभी तक न कोई वाहन ढूंढ़ा जा सका है और न किसी सुलभ मार्ग की जानकारी मिली है। किन्तु यदि पृथ्वी के निकटवर्ती किसी ब्लैक होल में प्रवेश किया जा सके और गन्तव्य लक्ष तथा उस विवर का अन्त जाना जा सके तो बिना किसी परिश्रम के एक से दूसरे ब्लैक होल के रास्ते उन सुदूर निहारिकाओं में पहुँचा जा सकता है। जिनकी कि अभी तो पूरी कल्पना भी नहीं हो पाई है।

अभी वारमूडा त्रिकोड के एक छोटे से ब्लैक होल का पता चल पाया है जो वायुयानों और जलयानों को अपने उदर में ग्रास की तरह घसीट ले जाता है पर पृथ्वी भर में यह एक ही हो ऐसी बात नहीं है। ध्रुव प्रदेश और समुद्रों के सुविस्तृत क्षेत्र में और भी कितने ही ऐसी ब्लैक होल हो सकते हैं जिनका आदि अन्त जाना जा सके तो ब्रह्मांड यात्रा अति सरल हो सकती है।

खगोल शास्त्रियों का कहना है कि यदि ब्लैक होल के शक्ति भण्डार का उपयोग किया जा सके तो ऊर्जा के लिए मुंहताज न होना पड़े। ब्लैक होल का शक्ति भण्डार अनन्त काल चलने वाला होता है, ऐसी मान्यता है।

कोई एक विशालकाय तारा जब मृत्यु के सन्निकट पहुँचता है तब उस दृश्य का अवलोकन करते हुए खगोल शास्त्रियों ने बताया कि उस अवधि में तारे का प्रकाश करोड़ों गुना बढ़ जाता है। यह इतना अधिक बढ़ता है कि सम्पूर्ण तारा समूह का प्रकाश एक ओर, इस मृतप्राय तारे का प्रकाश और विकिरण एक ओर। कई अरब वर्षों में एक तारे से जो प्रकाश शक्ति निःसृत होती है, मृत्यु के कुछ घण्टे पूर्व उतनी ही मात्रा में शक्ति व प्रकाश प्रवाहित हो जाता है। यदि अति विशालकाय तारे की मृत्यु का गहराई से अध्ययन किया जाय तो उसकी मृत्यु के साथ कभी-कभी एक ब्लैक होल का जन्म होता है। खगोल शास्त्रियों ने मृतप्राय तारे की तुलना करते हुए बताया है कि जिस पर ज्वलनशील पदार्थ या लकड़ी से निर्मित 40-50 मंजिल का मकान जलते-जलते ही टूटकर गिरने लगता है और अन्त में बहुत छोटे रूप में शेष रह जाता है उसी प्रकार तारा भी जलते-जलते अपने करोड़ों गुने छोटे रूप में संकुचित हो जाता है।

यदि कोई विराट् तारा जो सूर्य से 10 गुना बड़ा हो, उसकी मृत्यु हो तो वह ब्लैक होल में परिवर्तित होता है। उस स्थिति में वह कितना संकुचित होता है इसे इस प्रकार समझा जा सकता है- गुरू पृथ्वी से 13 सौ गुना बड़ा है और सूर्य गुरू से 1 हजार गुना बड़ा है तो 10 सूर्य जितने आकार का तारा पृथ्वी से 130 लाख गुना बड़ा होगा। ब्लैक होल बनने के बाद यह विराट् तारा पृथ्वी पर स्थित किसी ‘हवाई टापू’ जितना रह जाता है। अपने स्वरूप से कितने अरबों गुना गुना छोटा हो जाता है।

ब्लैक होल दो प्रकार के होते हैं (1) भंवरदार और (2) बिना भँवर वाले। जैसे नदियों में कई स्थानों पर गहरे पानी में भँवर होती है ठीक उसी प्रकार ब्लैक होल भी अपने पास जाने वाली किसी भी वस्तु को अपनी ओर खींच लेता है। इसी एक लक्षण द्वारा ब्लैक होल का अनुमान लगाया जा सकता है। क्योंकि यह प्रकाश भी सोख लेता है।

हमारे ‘मन्दाकिनी’ तारा विश्व में ही 50 लाख से अधिक ब्लैक होल होने की सम्भावना है। एक बड़ा ब्लैक होल कन्या राशि में पाया गया है जिसका एम 85 नाम है। एवं पृथ्वी से 6 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर है।

प्रसिद्ध भौतिकविद् ‘जान ए विलर’ की मान्यता है कि एक ब्रह्मांड से दूसरे ब्रह्मांड में जाने के लिए गुप्त सुरंग मार्ग ब्लैक होल हो सकते हैं।

कैम्ब्रीज युनिवर्सिटी के अनुसन्धान कर्ता स्टीफन होडिंग के अनुसार ब्लैक होल में स्थल और समय का कोई बन्धन नहीं होता। ब्लैक होल के माध्यम से मनुष्य वर्तमान से कई लाखों वर्ष पूर्व और लाखों वर्ष आगे भी पहुँच सकता है।

स्टीफन ने कहा है कि ब्लैक होल में कण और प्रति कण एक दूसरे को नष्ट करते रहते हैं।

जिस प्रकार ब्लैक होल प्रत्येक प्रकार के पदार्थ एवं प्रकाश किरण सोख लेता है और कहीं कुछ दिखाई नहीं देता है। इसी ब्रह्मांड में खगोलविदों ने ऐसे स्थान पाये हैं। जहाँ पहले कुछ नहीं था, वहाँ तीव्र गति से प्रकाश एवं अनेकों प्रकार के आयोनाइज कण पाये गये। ऐसे स्थानों को ‘‘व्हाइट होल’’ नाम से जाना जाता है। खगोल शास्त्रियों की कल्पना है कि ‘ब्लैक होल’ और ‘व्हाइट होल’ के बीच आपसी सम्बन्ध हैं। दोनों के माध्यम को ‘वर्म होल’ कहते हैं।

व्हाइट होल की खोज के बाद वैज्ञानिक अनुमान लगा रहे हैं कि संलग्न व्हाइट होल और ब्लैक होल के माध्यम से किसी अन्य ब्रह्मांड में भी पहुँचा जा सकता है क्या? इस संदर्भ में वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि इन संलग्न ब्लैक और व्हाइट होल के माध्यम से किसी अन्य ब्रह्मांड में कुछ समय में पहुंच सकते हैं जबकि यदि सीधे मार्ग से चला जाय तो कई अरब वर्ष लग जायेंगे।

महाभारत काल में भगीरथ के पूर्वज सगर राजा ने अश्वमेध यज्ञ किया था। इस यज्ञ का घोड़ा घूमते-घूमते किसी ऐसे अज्ञात स्थान में पहुँच गया जिसका पता नहीं लगा। उसे ढूंढ़ने में 60 हजार का जन समुदाय भी गायब हो गया। किंवदंती है कि वे सब पाताल पहुँच गये और भगीरथ ने तप द्वारा गंगा अवतरण कर उनका उद्धार किया। सम्भवतः ऐसी ही कुछ गति इन तारकों की भी होती होगी।

खोज के ऐसे-ऐसे अनेक क्षेत्र विज्ञान के सामने पड़े हैं पर उसे नक्षत्र युद्ध और परमाणु बम बनाने की वितृष्णा में चैन पड़े तब तो उन दिशाओं में कुछ सोच सकना संभव हो।


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