माँ हमेशा अपने बच्चों को स्वावलंबन की शिक्षा देती, उन्हें सुसंस्कारी बनाती है।
एक बार लक्ष्मी जी स्वर्ग से धरती पर आईं और लोगों को इकट्ठा करके कहा- ‘मनचाहा धन माँग लो।’ माँगने वालो की भीड़ जमा होने लगी।
धरती ने देवी के रूप में प्रकट होकर कहा- ‘‘बच्चों! मुफ्त का धन न लो। उससे तुम बेमौत मरोगे।’’ पर किसी ने उनकी सुनी नहीं। वरदान माँगते और कोठे भरते गये। देने के उपरान्त लक्ष्मी जी लौट गईं।
जिन्हें धन मिला था। उन्होंने काम धन्धा बन्द कर दिया। गुलछर्रे उड़ाने लगे। कई वर्ष प्रकार बीत गये। कोई खेत, कारखाने न गया। फलतः आवश्यक वस्तुएँ समाप्त होती गईं। दुर्भिक्ष खड़ा हो गया और लोग भूखों मरने लगे। यद्यपि सोना चाँदी सभी के कोठों में भरा पड़ा था।
धरती ने लम्बी साँस भरते हुए कहा- ‘‘मुफ्त के धन में अनेकों दुर्गुण जड़े रहते हैं। परिश्रम की कमाई पर सन्तोष करते, तो मेरे बच्चों की आज ऐसी दुर्गति क्यों होती।’’