यौन परिवर्तन की विचित्र घटनाएँ

October 1985

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यौन परिवर्तन का प्रथम आपरेशन जनवरी 1955 में अमेरिका में हुआ था। इसके उपरान्त वह सिलसिला तेजी से चला। जिन्हें यौन विकृतियाँ थी, वे आज लज्जा वश अपनी बात किसी के सम्मुख प्रकट नहीं कर पाते थे। पर इस सफलता से अनेकों की हिम्मत बढ़ी और अनुमानतः संसार भर में अब तक 70 हजार लोगों ने अपने आपरेशन कराकर लिंग परिवर्तन किया है। इनमें से 20 हजार अकेले अमेरिका में ही हुए हैं। डा. आर. विनियर ने इस सम्बन्ध में बहुत ख्याति प्राप्त की है।

ऐसे आपरेशन मात्र उन्हीं के होते हैं जिनमें पहले से ही उभय पक्षीय चिन्हों का प्रकट अस्तित्व है। आवश्यक नहीं कि यह स्थिति जन्मजात ही हो। मनोभूमि बदलने अथवा शारीरिक ज्वार-भाटों में किसी विशेष प्रकार का उफान आने से प्रजनन अंग भी नई दिशा में विकसित होने लगते हैं। यह ढलान इन दिनों नारीत्व की ओर अधिक है। इसलिए परिवर्तन भी उसी दिशा में अधिक हुए हैं और आपरेशन के उपरान्त मात्र जननेंद्रियों के परिवर्तन नहीं हुए वरन संतानोत्पादन के तद्नुरूप उपक्रम भी चल पड़े हैं।

शुक्राणुओं का डिम्बाणुओं में बदल जाना सरल है जबकि नये शुक्राणुओं का उत्पादन कठिन। जनखों में से अधिकाँश में स्त्री प्रधान प्रवृत्तियाँ अधिक पाई जाती हैं जबकि उनमें पुरुषत्व प्रधान कम ही होते हैं।

यहाँ एक विशेष रूप से आश्चर्यजनक बात यह है कि खिलाड़ी महिलाओं ने पुरुष बनने के प्रयास विशेष रूप से किये क्योंकि उनमें पौरुष की प्रवृत्ति पहले से ही अधिक परिपक्व हो चुकी थी और वे अपने को पुरुष वर्ग के अधिक निकट पाती थीं। चैकोस्लोविया की धावक टेन्डा काडव कोवा-उत्तरी कोरिया की दौड़ चैंपियन सिनाडेन डिन-ने इस संबन्ध में प्रयास किये और वे सफल रहीं। सन् 1974 में भारत की हॉकी प्रतियोगिता में मूर्धन्य महिला बलजीत कौर को भी ऐसी ही सफलता मिली।

विज्ञान इस संबन्ध में अधिक गंभीरता से शोधरत है कि क्या नारी के पुरुष वर्ग में परिवर्तित करने में अधिक सफलता पाई जा सकती है। क्योंकि शारीरिक श्रम की दृष्टि से वे ही अधिक समर्थ और निडर पाये गये हैं। स्त्री दिशा में परिवर्तन होने के उपरान्त उनकी कार्य क्षमता में किसी सीमा तक घटोत्तरी ही होती है।

इसी प्रकार अन्य कितनी ही प्रजातियाँ ऐसी हैं जो आवश्यकतानुसार लिंग परिवर्तन करती रहती हैं।

इसका एक कारण माँस भक्षण के समय नर के हारमोन नारी शरीर में और मादा पशु के हारमोन नर शरीर में जा पहुँचना भी है। इस कारण ही असमय में ही वे उभार उठने लगते हैं जो परिपक्व आयु में उठने चाहिए किन्तु समय से बहुत पहले ही परिवर्तन के चिन्ह प्रकट करने लगे।

हारमोनों में स्त्री-पुरुष को और पुरुष हारमोन स्त्री को इन्जेक्ट करके उनकी प्रवृत्तियाँ एक सीमा तक परिवर्तन हो सकती हैं। विशेषतया मूँछ के बालों की घट-बढ़ और स्तनों का उभार अधिक सरलता से हो सकता है। जननेन्द्रिय में परिवर्तन उसी दशा में संभव है जब दोनों प्रकार के चिन्ह पहले से ही मौजूद हों। अब ये परिवर्तन उतने विचित्र नहीं माने जाते जितने कि तीन दशक पूर्व माने जाते थे।


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