पण्डित जी नाव में बैठकर नदी पर कर रहे थे। रास्ते में मांझी के साथ वार्तालाप चल पड़ा।
पण्डित ने पूछा- भाई तुम गणित पढ़े हो? उसने ‘ना’ कह दिया। फिर वे भाषा, व्याकरण, भूगोल, इतिहास आदि के सम्बन्ध आदि के सम्बन्ध में पूछने लगे। हर बार उसने ‘ना’ का सिर हिला दिया। वह कुछ भी पढ़ा-लिखा नहीं था।
तो तुम्हारी जिन्दगी व्यर्थ चली गई। बिना पढ़े तो पशु होते हैं। माँझी चुप हो गया।
थोड़ी देर में हवा चली गई। भयानक आँधी आई और नाव डगमगाने लगी। डूबने का खतरा देखकर, माँझी ने पण्डित से पूछा- आपको तैरना आता है क्या?
अब की बार उनका सिल, हिला तो माँझी ने कहा- आपकी जिन्दगी पूरी तरह चली गई। मेरी नाव तो मात्र व्यर्थ हो गई थी।
मस्तिष्कीय ज्ञान से व्यावहारिक ज्ञान की महिमा कम नहीं है।
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