मानसिक एकाग्रता के सुनियोजित अभ्यास से रह व्यक्ति अपने अन्दर छिपी उन विभूतियों को जगा सकता है, जिन्हें अतीन्द्रिय कहा जाता है। लोग जिन्हें चमत्कार समझते हैं, वे वस्तुतः शारीरिक योगाभ्यास की अनेकों परिणतियों का एक छोटा-सा भाग भर है। इसमें ऐसा कुछ नहीं है जो असम्भव माना जा सके।
मैरीक्रैगकिमब्रो अमेरिका की एक जानी पहचानी अतीन्द्रिय क्षमता सम्पन्न महिला रही हैं। उनके पति अपट्रान सिनक्लेयर भी इस विषय पर एक जाने-माने लेखक के रूप में ख्याति प्राप्त कर चुके हैं। दोनों पति-पत्नी ने मिलकर दूरानुभूति (टेलीपैथी) सम्बन्धी अनेकों प्रयोग परीक्षण कर उन्हें सही पाया है। अपने लम्बे अनुभव के उपरान्त उन्होंने पाया है कि मन की क्षमता अपार है। यदि थोड़ा भी इसे साध लिया जाय तो इससे अनेकों करतब दिखाए जा सकते हैं जो सामान्य व्यक्तियों की दृष्टि में चमत्कार होते हैं। वस्तुतः ऐसी बात है ही नहीं। ये मानसिक चेतना की परिधि में आने वाली क्षमताओं का विस्तार भर है।
एक प्रयोग में मेरीक्रैग को एक बन्द लिफाफा दिया गया और उसके अन्दर बन्द तस्वीर के बारे में पूछा गया। क्रैग ने थोड़ी देर तक उसे अपने शरीर से चिपकाये रखा, ध्यानावस्था में चली गयी। 15 मिनट पश्चात् उसने कागज पर घोंसले की एक तस्वीर बनायी। इसके बाद लिफाफा खोला गया। उसके अन्दर भी पक्षी के घोंसले का चित्र बना हुआ था।
दक्षिणी कैलीफोर्निया में एक अन्य विदेशी युवक ‘जान’ रहता था, जो घूम-घूमकर ऐसे ही विलक्षण मानसिक करतब दिखाता था। जब वह गहरे ध्यान की स्थिति में जाता, तो उसका संपूर्ण शरीर कठोर व ठंडा हो जाता था ऐसी स्थिति में उसके सिर को एक कुर्सी पर तथा टाँग के अन्तिम सिरे को दूसरी कुर्सी में रखकर कोई उसके ऊपर खड़ा हो जाय, तो भी उसे कुछ पता नहीं चलता था। अनेक अवसरों पर समाधि की स्थिति में जान के पेट पर भारी-भरकम चट्टान रखकर वजनी हथौड़े के प्रहार से तोड़ा जाता पर इसका भी उसकी समाधि पर कोई प्रभाव पड़ता नहीं देखा गया, न ही उसे कोई तकलीफ अनुभव होती। इतना ही नहीं इस स्थिति में वह वायुरुद्ध ताबूत में बन्द होकर अनेक घण्टों तक जमीन के अन्दर पड़ा रह सकता था।
‘जान’ के इन प्रदर्शनों में किसी प्रकार की धोखाधड़ी अथवा छल-कपट की कोई गुंजाइश नहीं थी, क्योंकि सारी नुमाइशें योग्य वैज्ञानिक व मूर्धन्य शरीर शास्त्रियों के तत्वावधान में सम्पन्न होती, प्रदर्शन किसी कमरे में न होकर इसके लिए किसी पार्क अथवा खुले मैदान का चयन किया जाता, ताकि प्रदर्शक के लिए हाथ की सफाई का कोई अवसर ही न रह जाय।
इसी प्रकार का एक कौशल जॉन ने अपट्रान सिनक्लेयर के घर पर अनेक वैज्ञानिकों एवं डाक्टरों की उपस्थिति में दिखाया था। वह एक बेंच पर लेट गया। कोई हाथ की सफाई प्रस्तुत न करे, इसलिए जॉन के हाथ-पैरों को सिनक्लेयर के कुछ मित्र दृढ़ता से पकड़े हुये थे। उसने आँखें बन्द की और थोड़ी देर पश्चात् सामने पड़ी 34 पौण्ड वजनी मेज हवा में धीरे-धीर ऊपर उठने लगी। शनैः शनैः कर वह चार फुट ऊपर उठकर अधर में लटक गयी, फिर मन्थर गति से हवा में वह तैरने लगी ओर दर्शकों के सिर के ऊपर करीब आठ फुट की दूरी तय की।
इसके अतिरिक्त जॉन में टेलीपैथी और फेस रीडिंग की अद्भुत क्षमता विद्यमान थी। इस प्रदर्शन के दौरान वह कमरे से बाहर आ जाता और उपस्थित लोगों में से किसी एक से कमरे की कोई वस्तु मानसिक रूप से चुन लेने व उसे स्वयं तक सीमित एवं अप्रकट रखने को कहता। इसके बाद वह कमरे में प्रवेश कर उक्त व्यक्ति को अपने पीछे खड़ा होने तथा उस वस्तु पर विचार करते हुये पीछे खड़ा होने तथा उस वस्तु पर विचार करते हुये पीछे-पीछे आने का निर्देश देता। कुछ देर तक वह कमरे का चक्कर लगाता रहता, फिर कमरे से उस वस्तु को उठाकर दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत कर देता, जिसका उस व्यक्ति ने मानसिक रूप से चयन किया था।
जॉन जब अपट्रान के घर से चला गया, तो क्रैग एक दिन ध्यान करने को बैठी। उसने अपने अवचेतन मन से कहा, कि इस वक्त जॉन कहाँ है और क्या कर रहा है? इसकी सूचना उसे दे। थोड़ी देर पश्चात ध्यान में क्रैग को जॉन सड़क पर गुलदस्ता लेते हुये कहीं जाता दिखाई पड़ा। बाद में जॉन को टेलीफोन कर क्रैग ने तथ्य का पता लगाया। उसने बताया कि सचमुच उस समय वह लाँस एन्जिल्स की सड़कों पर गुलदस्ता लिए अपने एक मित्र को भेंट करने जा रहा था। इसके बाद क्रैग ने जॉन पर इस प्रकार के ढेर सारे प्रयोग किये।
एक ऐसे ही प्रदर्शन में कुछ लोगों ने सेकेंड की जानकारी रखने के लिए स्टॉप वॉच रख रखी थी। जितने समय में जानने समाधि से उठ बैठने का वचन दे रखा था, बिल्कुल उतने ही समय में उसने समाधि तोड़ी, एक सेकेंड का भी आगे पीछे नहीं हुआ।
मनोनिग्रह के दो रूप हैं। एक उथला-जिसमें मन की अनावश्यक दौड़-धूप की उच्छृंखलता को रोककर निर्धारित उपयोगी क्रिया-कलाप में केन्द्रित किया जाता है। यह विशुद्ध भौतिक है। हाथ पैर आँख कान को प्रयोजन विशेष में लगाये रहने के समान।
इससे भी कई उपयोगी कार्य सम्पन्न होते हैं। गणितज्ञों, साहित्यकारों, वैज्ञानिकों, मदारियों, बाजीगरों, बन्दूक का निशाना लगाने वालों में इस विशेषता के कारण ही प्रवीणता पाई जाती है। सृजन प्रयोजनों में अध्ययन में यह एकाग्रता आवश्यक होती है और पहलवान, सरकस के नट नायक प्रायः इसी कला में अभ्यस्त होते हैं। रस्सी पर चलना, खेल दिखाना इसी प्रवीणता का प्रतिफल है।
व्यवहारिक मन की ही तरह अचेतन तन भी मस्तिष्क के ही एक के एक स्तर विशेष हैं। उसका नियमन अभ्यास करने से वे क्षमताएँ जागृत होती हैं जिन्हें अतीन्द्रिय क्षमताएँ कहते हैं। इसके द्वारा सम्पन्न होने वाले कार्य भी मन में सन्निहित सूक्ष्म इन्द्रिय शक्ति से ही सम्पन्न होते हैं। आँखों से एक सीमित दूरी तक ही देखा जा सकता है। कानों में अमुक स्तर की आवाजें सुनी जा सकती हैं पर उनके साथ यदि निग्रह मन का संयोग बन पड़े तो दूर के दृश्यों को देख सकना और दूरवर्ती वार्तालाप को सुन सकना सम्भव हो सकता है। इसी प्रकार से एक इन्द्रिय का काम दूसरी इन्द्री से भी लिया जा सकता है। आँखों का काम नाक, कान या अंगुलियों से भी लिया जा सकता है। एक इन्द्रिय के न होने पर उस कार्य को अचेतन मस्तिष्क शरीर में किसी भी संवेदनशील अंग से पूरा करा सकता है। इस अभ्यास से प्राण शक्ति जासूसी कुत्तों जैसी भी हो सकती है। इसके सहारे किसी खोये या अविज्ञात व्यक्ति को ढूंढ़ा या पकड़ बुलाया जा सकता है। अन्य जीव जन्तुओं में कई प्रकार की विलक्षणताएं देखी जाती हैं। मकड़ी, बिल्ली आदि में मौसम ढलने या किसी दुर्घटना के घटित होने की पूर्वाभास क्षमता पाई जाती है। इस स्तर की विशेषताओं के लिए भौतिक मन का केन्द्रीकरण एक ज्ञानविधि का अभ्यास ही पर्याप्त है। मैस्मरेजम हिप्नोटिज्म जैसे खेल सामान्य स्तर के लोग भी विकसित कर लेते हैं। कइयों में ये बिना किसी अभ्यास के जन्मजात रूप से पाई जाती है। पैरासाइकोलॉजी परामनोविज्ञान के आधार पर ऐसी ही क्षमता सम्पन्न मनुष्यों की खोज बीन की जा रही है। जिससे जाना जा सके कि किसमें अनायास ही यह विभूतियाँ प्रकट हुईं और किनने इसके लिए कुछ साधन या अभ्यास किया। इस संदर्भ में मस्तिष्क को और भी तीव्रगामी परिवर्तित स्थिति का बनाने के लिए कतिपय विश्व विद्यालयों द्वारा शोध प्रयास चल रहे हैं। इनमें सफलता भी मिल रही है। पर यह समझा जाना चाहिए कि यह समस्त घटना क्रम में विलक्षणताएँ भरी पड़ी हैं। एक शुक्राणु अपने जैसा एक नया मनुष्य गढ़ सकता है। इसे क्षमता के अंतर्गत ही समझा जाना चाहिए। मस्तिष्क शरीर का ही एक अंग है।
कितने ही व्यक्ति कई प्रकार के आश्चर्यजनक शारीरिक पराक्रम दिखाते हैं। खेल प्रतियोगिताओं में ऐसा बहुत कुछ देखने को मिलता है। कई व्यक्ति अनोखेपन के कई कीर्तिमान स्थापित करते हैं। यह शारीरिक पुष्टाई का प्रमाण है। इसी प्रकार मन भी शरीर का ही एक अंग अवयव है। यह भी ग्यारहवीं इन्द्रिय है। उसके चमत्कारों को भी भौतिक विशेषताओं की परिधि में लाना पड़ेगा। बहुत से छोटी आयु के बच्चे संगीत बजाते और प्रवचन रट लेते हैं। यह उनकी बौद्धिक प्रवीणता है। इन्हें आश्चर्यजनक मानते हुए भी शारीरिक या मानसिकता का नैतिक दासता ही कहा जायेगा।
आध्यात्मिक उत्कर्ष इससे आगे का चरण है। उसमें चित्त का नहीं, चित्त वृत्तियों का निरोध करना पड़ता है। चित्त वृत्तियाँ अर्थात् दुष्प्रवृत्तियां। संयम से लेकर योगाभ्यास तक यही विषय प्रधानता पाता रहा है। इस स्थिति से उबरने पर ही मनचाही आध्यात्मिक साधना बन पड़ती है, जिसमें वासना के लिए ही नहीं, तृष्णा के लिए भी कहीं कोई गुंजाइश नहीं है। फिर अहन्ता की, वाहवाही लूटने की, दूसरों पर छाप छोड़ने, किसी को नीचा दिखाने की गुँजाइश कैसे हो सकती है। माँसाहार, मद्यपान जैसे आत्मा पर कलुष कषाय चढ़ायें वाले व्यवहारों की भी गुँजाइश नहीं है। ऐसे लोगों को आध्यात्मिक वातावरण में रहना पड़ता है। उन्हें मदारी, नट, बाजीगर एवं अविश्वासी तार्किकों के बीच में निर्वाह कर सकना कठिन होता है।
जादूगरी प्रत्यक्षतया हाथ की सफाई या छल है। भले जादूगर इस बात को प्रकट भी कर देते हैं कि यदि उनके पास सिद्धियाँ रही होती तो तमाशा दिखाने का व्यवसाय क्यों अपनाते। अध्यात्म वेत्ता छल क्यों करेगा? और किसलिए आत्म-प्रवंचना अपनाकर धूर्तों की बिरादरी में सम्मिलित होगा?
आध्यात्मिक सिद्धियाँ वे है जिनमें वे उच्चस्तरीय व्यक्ति किसी को अपना संचित विभूतियों का एक अंश देकर उसे अपनी बिरादरी में घसीट ले जाता है। ऊँचा उठाता और आगे बढ़ाता है। दोष-दुर्गुणों से छुड़ाता और कन्धे पर बिठाकर गहरी नदी में तैरते हुए अपने प्रियजनों को पार लगाता है।