गायत्री महाविज्ञान (तृतीय भाग)

सूर्य नमस्कार की विधि

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प्रातः काल सूर्योदय समय के आस पास इन साधना को करने के लिए खड़े हूजिए। यदि अधिक सर्दी गर्मी या हवा हो तो हलका कपड़ा शरीर पर पहने रहिए। अन्यथा लंगोट या नेकर के अतिरिक्त सब कपड़े उतार दीजिए। खुली हवा में स्वच्छ खुली खिड़कियों के कमरे में कमर सीधी रखकर खड़े हूजिए।

मुख पूर्व की ओर कर लीजिए। नेत्र बन्द करके हाथ जोड़ कर भगवान सूर्य नारायण का ध्यान कीजिए और भावना कीजिए की तेजस्वी आरोग्य मयी किरणें आपके शरीर में चारों ओर से प्रवेश करती हुई आपको तेज धारण आरोग्य प्रदान कर रही हैं अब निम्न प्रकार क्रिया आरम्भ कीजिए।

1—पैरों को सीधा रखिए। कमर पर से नीचे की ओर झुकिए, दोनों हाथों को जमीन पर लगाइए। मस्तक घुटनों से लगे, यह हस्तपादासन है। इससे टखनों का, टांग के नीचे के भागों का, जंघा का, चूतड़ों का, पसलियों का, कन्धों के पृष्ट भाग तथा बांहों के नीचे के भाग का व्यायाम होता है।

2—सिर को घुटनों से हटा कर लम्बा श्वांस लीजिए। पहले दाहिने पैर को पीछे ले जाइए और पंजे को लगाइए। बाएं पैर को आगे की ओर मुड़ा रखिए। दोनों हथेलियां जमीन से लगी रहें। निगाह सामने और सिर कुछ ऊंचा रहे। इससे जांघों के दोनों भागों का तथा बांए पेड़ू का व्यायाम होता है इसे ‘‘एकपादप्रसरणासन’’ कहते हैं।

3—बांए पैर को भी पीछे ले जाइए। उसे दाहिने पैर से सटा कर रखिए। कमर को ऊंचा उठा दीजिए। सिर और सीना कुछ नीचे झुक जायगा।

      यह द्विपादप्रसरणासन है। इससे हथेलियों की सब नसों का, भुजाओं का, पैरों की उंगलियों और पिंडलियों का व्यायाम होता है।

4—दोनों पांवों के घुटने, दोनों हाथ, छाती तथा मस्तक इन सब अंगों, को सीधे रख कर भूमि से स्पर्श कराइए। शरीर तना रहे—कहीं लेटने की तरह निःचेष्ट न हो जाइए। पेट जमीन को न छुये।

      इसे अष्टांग प्रणिपातासन कहते हैं। इससे बाहों, पसलियों, पेट गर्दन, कन्धे तथा भुजदंडों का व्यायाम होता है।

5—हाथों को सीधा खड़ा कर दीजिए। सीना ऊपर उठाइए। कमर को जमीन की ओर झुकाइए सिर ऊंचा कर दीजिए आकाश को देखिये। घुटने जमीन पर न टिकने पावें। पंजे और हाथों पर शरीर सधा रहे। कमर जितनी मुड़ सके मोड़िए ताकि धड़ ऊपर को अधिक उठ सके।

      यह सर्पासन है। इससे जिगर का आंतों का तथा कण्ठ का अच्छा व्यायाम होता है।

6—हाथ और पैरों के पूरे तलुए जमीन से स्पर्श कराइए। घुटने और कोहनियों के टखने झुकने न पावें। कमर को जितनी हो सके ऊपर उठा दीजिए। ठोड़ी कण्ठ मूल में लगी रहे, सिर नीचा रखिए।

      यह मूधरासन है। इससे गर्दन, पीठ, कमर, कूल्हे, पिंडली, पैर तथा भुजदण्डों की कसरत होती है।

7—यहां से अब पहले की हुई क्रियाओं पर वापिस जाया जायगा। दाहिने पैर को पीछे ले जाइए। पूर्वोक्त नं0 2 के अनुसार एकपाद प्रसारणासन कीजिए।

8—पूर्वोक्त नं0 1 की तरह हस्त पादासन कीजिए।

9—सीधे खड़े हो जाइए। दोनों हाथों को ऊपर आकाश की ओर ले जाकर हाथ जोड़िए। सीने को जितना पीछे ले जा सकें ले जाइए। हाथ जितने पीछे जा सकें ठीक है। पर वे मुड़ने न पावें। यह ऊर्ध्व नमस्कारासन है इससे फेफड़े और हृदय का अच्छा व्यायाम होता है।

10—अब उसी आरम्भिक स्थिति पर आ जाइए। सीधे खड़े होकर हाथ जोड़िए और भगवान सूर्य नारायण का ध्यान कीजिए।

यह एक सूर्य नमस्कार हुआ। आरम्भ पांच से करके सुविधानुसार थोड़ी थोड़ी संख्या धीरे धीरे बढ़ाते जाना चाहिए। व्यायाम काल में मुंह बन्द रखना चाहिए। सांस नाक से ही लेनी चाहिए।





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