गायत्री महाविज्ञान (तृतीय भाग)

आत्म चिन्तन की साधना

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रात को सब कार्यों से निवृत्त होकर जब सोने का समय हो तो सीधे चित्त लेट जाइए। पैर सीधे फैला दीजिए। हाथों को मोड़ कर पेट पर रख लीजिए। शिर सीधा रहे। पास में दीपक जल रहा हो तो बुझा दीजिए या मन्द कर दीजिए। नेत्रों को अध खुले रखिए।

अनुभव कीजिए कि आपका आज का एक दिन, एक जीवन था। अब जब कि एक दिन समाप्त हो रहा तो एक जीवन की इति श्री हो रही है। निद्रा एक मृत्यु है। अब इस घड़ी में एक दैनिक जीवन को समाप्त करके मृत्यु की गोद में जा रहा है।

आज के जीवन का आध्यात्मिक दृष्टि से समालोचना कीजिए। प्रातःकाल से लेकर सोते समय तक के कार्यों पर दृष्टिपात कीजिए। मुझ आत्मा के लिए वह कार्य उचित था या अनुचित? यदि उचित था तो जितनी सावधानी एवं शक्ति के साथ उसे करना चाहिए था उसके अनुसार किया या नहीं? बहुमूल्य समय का कितना भाग उचित रीति से कितना अनुचित रीति से, कितना निरर्थक रीति से व्यतीत किया? यह दैनिक जीवन सफल रहा या असफल? आत्मिक पूंजी में, लाभ हुआ या घाटा? सद्वृत्तियां प्रधान रहीं या असद्वृत्तियां? इस प्रकार के प्रश्नों के साथ दिन भर के कामों का निरीक्षण कीजिए।

जितना अनुचित हुआ हो उसके लिए आत्म देव के सम्मुख पश्चात्ताप कीजिए। भविष्य में भूल को न दुहराने का निश्चय ही सच्चा पश्चात्ताप है। जो उचित हुआ हो उसके लिए परमात्मा को धन्यवाद दीजिए और प्रार्थना कीजिए कि आगामी जीवन में, कल के जीवन में, उस दिशा में विशेष रूप अग्रसर करे। इसके पश्चात शुभ वर्ण आत्म ज्योति का ध्यान करते हुए निद्रा देवी की गोद में सुख पूर्वक चले जाइए।


दूसरी साधना

प्रातःकाल जी नींद पूरी तरह खुल जाय तो अंगड़ाई लीजिए। तीन पूरे लम्बे सांस खींच कर सचेत हो जाइए।

भावना कीजिए कि आज नया जीवन ग्रहण कर रहा हूं। नया जन्म धारण करता हूं। इस जन्म को इस प्रकार खर्च करूंगा कि आत्मिक पूंजी में अभिवृद्धि हो। कल के दिन, पिछले दिन जो भूलें हुई थी, आत्म देव के सामने जो पश्चाताप किया था, उसको ध्यान में रखता हुआ आज के दिन का अधिक उत्तमता के साथ उपयोग करूंगा।

दिन भर के कार्यक्रम की योजना बनाइए। इन कार्यों में जो खतरा सामने आने को है उसे विचारिए और उससे बचने के लिए सावधान हूजिए। उन कार्यों में आत्मलाभ होने वाला है वह और अधिक हो इसके लिए तैयारी कीजिए। यह जन्म, यह दिन, पिछले की अपेक्षा अधिक सफल हो, यह चुनौती अपने आपको दीजिए और उसे साहस पूर्वक स्वीकार कर लीजिए।

परमात्मा का ध्यान कीजिए और प्रसन्न मुद्रा में, एक चैतन्यता, ताजगी, उत्साह, साहस, आशा एवं आत्म विश्वास की भावनाओं के साथ उठ कर शय्या का परित्याग कीजिए। शय्या से नीचे पैर रखना मानों आज के नव जीवन में प्रवेश करना है।

इस आत्म चिन्तन की साधना से दिन दिन शरीराध्यास घटने लगता है। शरीर को लक्ष करके किये जाने वाले विचार और कार्य शिथिल होने लगते हैं तथा वह विचार धारा एवं कार्य प्रणाली समुन्नत होती है जिसके द्वारा आत्म लाभ के लिए अनेक प्रकार के पुण्य आयोजन होते हैं।






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