गायत्री महाविज्ञान (तृतीय भाग)



गायत्री के पांच मुख और दश भुजा होने का वर्णन अनेक जगह आता है। ऐसी अनेक तस्वीरें एवं मूर्तियां भी मिलती हैं। यह अनेक मुख और अनेक भुजाएं साधारण पाठकों के लिए एक पहेली है जिसे न सुलझा सकने पर वे गायत्री विद्या जैसे सुदृढ़ विज्ञान को साम्प्रदायिक कथा गाथाओं की श्रेणी में रख देते हैं और उसके महत्व की गम्भीरता का संदेह करने लगते हैं।

इस पुस्तक की रचना उस गुत्थी को सुलझाने के लिए की गई है। गायत्री के पांच मुख आत्मा के पांच कोश पांच आवरण हैं। अन्नमय कोश, प्राणमय कोश, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोश, आनन्दमय कोश यह पांच आत्मा के आवागमन के, कैद तथा छुटकारे के वैसे ही द्वार है जैसे कि मनुष्य के शरीर में सांस आने जाने के लिए मुख के छिद्र होते हैं। पांच मुखों के चित्रण में योग विद्या का; वह गुप्त विज्ञान और विधान दिया हुआ है जिसको जानकर परम पद को, लक्ष को प्राप्त किया जा सकता है।

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