“ईश्वर की प्राप्ति कहाँ से हो सकती हैं?” एक जिज्ञासु युवक ने पूछा। संत नामदेव ने कहा, “सायंकाल मेरे साथ चलना, मैं तुम्हें ईश्वर के साक्षात् दर्शन करा लाऊँगा।
युवक शाम की उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा करने लगा। शाम हुई और चल पड़ा संत के साथ। संत नामदेव ने हरिजन बस्ती में एक वृद्ध के घर उसे ले जाकर खड़ा कर दिया।
टूटी खाट पर एक बोरा बिछाए एक दस वर्षीय मातृहीन बालक लेटा हुआ था। वैद्यों ने बताया था कि उसे क्षयरोग हो गया है। संत नामदेव ने प्यार से उसे दवा पिलाई सेवा−शुश्रूषा की। थोड़ी देर बार दूसरी दिन पुनः आने का आश्वासन देकर युवक को लेकर वापस चल पड़े। युवक ने पूछा, “तात, आपने ईश्वर के दर्शन कराने का आश्वासन दिया था।” संत बोले, “वह बच्चा ही ईश्वर था।” युवक को विश्वास हो गया कि पीड़ित मानवता की सेवा ही सच्ची आराधना है।