एक पुजारी नियत समय पर पूजा करने आता और आरती करते−करते भावविह्वल हो जाता, पर घर आते ही अपनी पत्नी−बच्चों के प्रति कर्कश व्यवहार करने लगता। एक दिन उसका छोटा वाला बालक भी साथ लगा चला आया। पुजारी स्तुति कर रहा था, “हे प्रभु, तुम सबसे प्यार करने वाले, सब पर करुणा लुटाने वाले हो।”
अभी वह इतना ही कह पाया था कि बच्चा बोल उठा, “हे पिता, जिस भगवान के पास इतने दिन रहने पर भी आप करुणा और प्यार करना न सीख सके, उस भगवान के पास रहने, न रहने से क्या लाभ!” पुजारी को अपनी भूल मालूम पड़ गई और वह उस दिन से आत्मनिरीक्षण व आत्मसुधार में लग गया।