सुकोमल संवेदना, पवित्र भावना के प्रतीक हैं पुष्प

March 2003

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पुष्प वृक्ष के हृदय का आनन्द है, उल्लास है। वृक्ष अपने आनन्द की अभिव्यक्ति पुष्पों के माध्यम से करता है। पुष्प को सुमन भी कहा जाता है। इसकी व्युत्पत्ति करते हुए महाभारत में कहा गया है-

मनो ह्लदयने यस्माचिछरयं चापि दधाति च। तस्मात् सुमनसः प्रोक्ता नरैः सुकृतमभिः॥

अर्थात् पुष्प मन को आह्लादित करते हैं तथा शोभा और सम्पत्ति का आधार है। अतः पुण्यात्माओं ने इन्हें सुमन कहा है।

भारतीय जीवन में पुष्पों का अत्यधिक महत्त्व है। किसी न किसी रूप में इसका उपयोग सभी जगह होता है। प्राचीन मान्यता है कि पुष्प की सुगन्ध से देवता प्रसन्न होते हैं। उसको देखकर यक्ष और राक्षस तुष्ट होते हैं। नाग उसका उपभोग करके ही तृप्त होते हैं। परन्तु मनुष्य गंध, दर्शन और उपभोग तीनों से ही आनन्दित और खुश होते हैं। चूँकि देवता गन्ध प्रिय होते हैं। अतः गन्धवा के पुष्प देवताओं को प्रिय होते हैं। कहा भी गया है- ‘इष्ट गन्धानि देवानाँ पुष्पाणीति विमावय।’ काँटों से रहित वृक्षों के श्वेतवर्ण वाले पुष्प देवताओं को बहुत भाते हैं। इसी कारण कमला, तुलसी और चमेली की प्रशंसा की जाती है।

अथर्ववेद में इस तथ्य का और भी रोचक वर्णन किया है। इसमें उल्लेख है कि जिन पुष्पों के वृक्षों में काँटे अधिक हों, जो सख्त हों, जिसको रंग गहरा लाल या काला तथा जिनकी गन्ध का प्रभाव तीव्र हो, ऐसे पुष्प प्रेतों को अर्पित किये जाते हैं। महाभारत के अनुसार कमला और उत्पल आदि पुष्प नागों को और यक्षों को समर्पित किये जाते हैं। भिन्न-भिन्न देवात्माओं के लिए प्रयुक्त पुष्प भिन्न-भिन्न होते हैं। आम की मञ्जरी से कामदेव की पूजा की जाती है। शिव जी को पुष्कर बीज माला एवं धतूरे का फूल पसन्द है। आक पुष्पों से उनके पाँच प्रमुख गणों की पूजा की जाती है। पार्वती अपने कण्ठ में कनेर की पुष्पों की माला धारण करती हैं। देव विग्रहों पर चन्दन के पुष्प चढ़ाये जाते हैं। सूर्य अर्चना कुटज (कट सरैया) से करने का विधान है। विद्याधर गण दिव्य मंदान्त पुष्पों को सूर्य देव को समर्पित करते हैं।

महाभारत में वनमालाधारी भगवान श्रीकृष्ण एवं युधिष्ठिर का पुष्प संवाद उल्लेखनीय है। श्रीकृष्ण अपनी प्रिय एवं पसन्द के पुष्पों का नाम बताते हैं- कुमुद, करवीर, चणक, मालती, जातिपुष्प, नन्धावर्त, नंदिक, पलाश, मृंगक और वनमाला। गुणों के आधार पर सभी प्रकार के फूलों का अपना महत्त्व एवं प्रभाव होता है। परन्तु सभी प्रकार के फूलों से उत्पन्न पुष्प को हजार गुना अच्छा माना गया है। उत्पन्न से बढ़कर क्रमशः पद्म, शतदल, सहस्रदल, पुण्डरिक, तुलसी तथा सौवर्ण आदि हैं।

सभी पुष्प देवार्चन में प्रयोग नहीं होते। वेदव्यास ने त्याज्य एवं वर्जित पुष्पों का नाम बताया है। ये पुष्प हैं-किंकिषी, मुनिपुष्प, धुधूर, पाटल, लाँगुलीजपा, कर्णिकार, अशोक, सेमल, कुसुम, कोविदार, वैभीतक, कुरंटक, कल्पक, कालक, अंकोल, गिरिकर्णी, नीले रंग के फूल और पंखुड़ी वाले फूल। नीम पुष्प को भी अच्छा नहीं माना जाता। जो फूल श्मशान या अपवित्र स्थान पर उत्पन्न हुए हों उनको भी उपयोग नहीं करना चाहिए।

पुष्प तो साहित्य का हृदय है। यह कोमल भावनाओं का प्रतीक है। वकुल या मौलश्री की माला का उपयोग धार्मिक कृत्यों में भी किया जाता है। जयमाला के रूप में यह काम आता है। नाटककार भवभूति के ‘मालती माधवम्’ में इसका रोचक वर्णन मिलता है।

शिखि का फूल शृंगार के लिए प्रसिद्ध है। महाकवि शुद्रक ने अपने लोकप्रिय नाटक ‘मृच्छकटिकम्’ में लाल-लाल कुसुम, कल्कीपोवाली, करवीर की माला का उल्लेख किया है, जो प्राण दण्ड के समय पहनायी जाती है। कवि कुलगुरु कालिदास ने अपने कालजयी नाटक ‘अभिज्ञानशाँकुन्तलम्’ में पुष्पों का बड़ा ही मनोरम चित्रण किया है। उन्होंने पुष्प के माध्यम से प्रकृति एवं मानव के प्रगाढ़ मैत्री एवं घनिष्ठ सम्बन्धों को जितना सुन्दर तथा प्रभावोत्पादक ढंग से संजोया है, उतना अन्यत्र दुर्लभ है। उनके ‘अभिज्ञानशाँकुन्तलम्’ की नायिका शकुंतला को पुष्प प्राण से भी प्रिय हैं। कालिदास शकुंतला के सौंदर्य का जीवन्त उदाहरण देते समय ‘कुसुमभिवलोभनीयम्’ उक्ति के माध्यम से सौंदर्य जगत् में पुष्पों को उच्च से उच्चतर श्रेणी प्रदान करते हैं।

इसी कारण लोक जीवन में पुष्पों को मानव से अभिन्न माना गया है। पुष्पों में भी सहज, सरल मानवीय संवेदनाओं का समावेश कर निकटता स्थापित की गयी है। क्योंकि जीवन की जटिलताओं से अशान्त मन को पुष्पों ने अगाध आत्मीयता व स्नेह दिया है। इसी कारण मनुष्य किसी बाग-बागान में जाकर भिन्न-भिन्न रंगों के पुष्पों के संग बड़ी ही शान्ति व प्रसन्नता का अनुभव करता है। वहाँ जाकर वह अपने समस्त दुःख-पीड़ा व कष्ट कठिनाइयों को भूलकर फूलों के समान सहज, सरल व भावपूर्ण हो जाता है। पुष्प हमारी कल्पनाओं को नव रंग से भर देते हैं, उसकी ऊँची उड़ान के लिए प्रेरणा भरते हैं साथ ही यथार्थ जीवन में जीने के लिए नया उत्साह व उमंग प्रदान करते हैं। इस प्रकार पुष्पों में मस्त, संतप्त, हर्ष, उल्लास, अनुराग, विराग, विरह, मिलन, शृंगार सभी कुछ की एकरूपता दृष्टिगोचर होती है।

पुष्प सुकोमल संवेदना और पवित्र भावनाओं के प्रतीक एवं पर्याय हैं। सुख-दुःख के साँसारिक चक्र में डूबते-उतरते मानव का मन इसे देख के हर्षित हो उठता है, भावनाएँ प्रफुल्लित हो उठती हैं। यह मानव जीवन के यथार्थता को बोध कराता है कि हे मानव! तुम महान् एवं दिव्य हो और तुम्हारी दिव्यता निराशा के घने कुहासे में भटक जाने में नहीं है, उदासी की कालिमा में मलिन हो जाने के लिए नहीं है वरन् श्रेष्ठ आदर्शों और उच्चतम लक्ष्य के लिए मेरे समान मुस्काते हुए समर्पित हो जाने में है। पुष्प की मुस्कुराहट मानव जीवन के लिए एक गहरी सीख है, एक पवित्र धरोहर है। इसकी कोमल भावनाओं, सजल संवेदनाओं को यदि हम अपने हृदय में संचरित कर सकें तो जीवन धन्य हो उठेगा। देवार्चित पुष्प के समान हमारा जीवन भी प्रभु के चरणों में उल्लास, आनन्द के संग समर्पित हो सके तो ही इसका उपादेयता एवं उपयोगिता है।


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