कथा में युवक ने सुना, “भगवान सबको रोटी देते हैं।” युवक को बात जँच गई। उसने काम पर जाना बंद कर दिया। जो पूछता, यही उत्तर देता, “भगवान जब रोटी देने ही वाले हैं तो मेहनत क्यों करूं?” एक ज्ञानी उधर से निकले। मतिभ्रम ग्रस्त लड़के की हालत समझी और प्यार से दूसरे दिन सवेरे उसे अपने पास बुलाया और कुछ उपहार देने को कहा। युवक भावुक था। सवेरे ही पहुँच गया। ज्ञानी ने पूछा, “कैसे आए?” उसने उत्तर दिया, “पैरों से चलकर।” ज्ञानी ने उसे मिठाई उपहार में दी और कहा, “तुम पैरों से चलकर मेरे पास तक आए, तभी मिठाई पा सके। ईश्वर रोटी देता तो है, पर देता उसी को है जो हाथ−पैरों के पुरुषार्थ से उसे कमाने और पाने के लिए चलता है। जब मेरा मिष्ठान्न तुम बिना पैरों से चले प्राप्त नहीं कर सके तो भगवान द्वारा दी जाने वाली रोटी कैसे प्राप्त कर सकोगे?” युवक को अपनी भूल प्रतीत हुई।