डाकू वहाँ से भाग गया (kahani)

March 2003

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

एक दिन पंडित जी की कथा सुनने एक डाकू भी आया। पंडित जी समझा रहे थे, क्षमा और अहिंसा मनुष्य के भूषण हैं, इनका परित्याग नहीं करना चाहिए। कथा समाप्त हुई। पंडित जी दक्षिणा आदि लेकर गाँव की ओर चल पड़े। बीच में जंगल पड़ता था। वहाँ डाकू आ धमका और पंडित जी को सारा धन रख देने के लिए कहा। पंडित जी निडर थे, पास में लाठी रहती थी, सो प्रहार करने के लिए डाकू की ओर दौड़े। डाकू घबरा गया और विनयपूर्वक बोला, महाराज, आप तो कह रहे थे कि क्षमा और अहिंसा मनुष्य के भूषण हैं, इन्हें नहीं त्यागना चाहिए। पंडित जी बोल, वह तो सज्जनों के लिए था, तेरे जैसे दुष्टों के लिए तो यह लाठी ही उपयुक्त है। पंडित जी का रौद्र रूप देखकर डाकू वहाँ से भाग गया।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles