तीन पथिक पहाड़ी की ऊपरी चोटी पर लंबा रास्ता पार कर रहे थे। धूप और थकान से उनका मुँह सूखने लगा। प्यास से व्याकुल हो उनने चारों ओर देखा, पर वहाँ पानी न था। एक झरना बहुत गहराई में नीचे बह रहा था। एक पथिक ने आवाज लगाई, “हे ईश्वर, सहायता कर हम तक पानी पहुँचा।” दूसरे ने पुकारा, “हे इंद्र, मेघमाला ला और जल बरसा।” तीसरे पथिक ने किसी से कुछ नहीं माँगा और चोटी से नीचे उतर तलहटी में बहने वाले झरने पर जा पहुँचा और प्यास बुझाई।
दो प्यासों की आवाजें अभी भी सहायता के लिए पुकारती हुई पहाड़ी को प्रतिध्वनित कर रही थीं, पर जिसने आत्मावलंबन का साहस किया, वह तृप्तिलाभ कर फिर आगे बढ़ चलने में समर्थ हो गया।
आत्मावलंबी किसी अनुग्रह, वरदान की प्रतीक्षा नहीं करते, न ही याचना, वरन् प्रगति का पथ स्वयं बनाते हैं। अपनी सहायता आप करते हैं।