इस युग की महाव्याधि : मानसिक तनाव

January 2003

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तनाव आज जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। बच्चा, बूढ़ा, अमीर-गरीब, बुद्धिजीवी-श्रमशील, पुरुष-स्त्री सभी इससे ग्रसित हैं। अतः आज के युग को यदि तनाव युग कहें तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। तनाव सिद्धान्त के जनक महान् मनोवैज्ञानिक हॉन सालाई के अनुसार आज ऐसे व्यक्ति की कल्पना असम्भव है जो मानसिक तनाव को अनुभव न करता हो, तनाव एक महाव्याधि के रूप में मानव जाति को आतंकित किये है।

तनाव मनुष्य के लिए हानिकारक ही हो ऐसी बात भी नहीं है। यह मनुष्य के विकास एवं प्रगति में कारक तत्त्व रहा है। आपातकालीन परिस्थितियों का सामना करने में मन एवं शरीर को तनाव ही तैयार करता है। ‘ऑवरकमिंग टेन्शन’ के लेखक डॉ. केनेश हेम्वली के अनुसार प्रागैतिहासिक काल का आदिमानव इस तनाव द्वारा ही जंगली पशुओं के हमलों से बचने में समर्थ रहता था। तनाव की स्थिति में शरीर की एड्रीनल ग्रंथि से एड्रीनेलिन नामक हारमोन स्रावित होता है, जो शरीर की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाता है व शरीर को बाह्य दबाव सहन करने में सक्षम बनाता है। यदि तनाव न होता तो शायद आज का मनुष्य प्रागैतिहासिक आदि मानव की स्थिति में ही होता।

तनावपूर्ण स्थिति से निपटने की व्यवस्था प्रकृति ने मनुष्य शरीर में दी है। लेकिन बार-बार लम्बे समय तक तनावपूर्ण स्थिति के बने रहने के कारण यह व्यवस्था चरमरा जाती है। क्योंकि इस अवस्था में हारमोन का स्राव अनावश्यक एवं अत्यधिक मात्रा में होता है जो शरीर के विभिन्न अंग- अवयवों पर दुष्प्रभाव डालता है। माँसपेशियों में खिचाव, पेट दर्द, कँधे व पैर में दर्द, दस्त, साँस लेने में तकलीफ, पेशाब व हृदयगति की अनियमितता, थकान, सरदर्द आदि शारीरिक लक्षण दिखाई पड़ते हैं। अधिक गम्भीर होने पर इसके दुष्परिणाम आँत के फोड़े (पेपरिक अल्सर), हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, गठिया, अनिद्रा, कोलाइटिस, कब्ज, स्नायु दुर्बलता, एलर्जी, चिड़चिड़ापन, एकाग्रता में कमी जैसे रोगों के रूप में प्रकट होते हैं।अत्यधिक तनाव शरीर व मन को तोड़-मरोड़ कर रख देता है व शीघ्र ही बुढ़ापे की ओर ले जाता है। यह असामयिक मृत्यु का कारण भी बन सकता है। अब तो मधुमेह, कैंसर, एड्स जैसे गम्भीर रोगों का कारण भी तनाव माना जा रहा है।

तनाव व्यक्ति के स्वास्थ्य के साथ उसकी कार्यक्षमता की तबाही कर देता है। एक अध्ययन के अनुसार तनाव रहित स्थिति में एक व्यक्ति बिना थके 18 घण्टे काम कर सकता है। लेकिन यदि उसे तनावग्रसित स्थिति में काम करना पड़े तो वह 8 घण्टे में ही थक जायेगा।

बढ़ते तनाव के कारण मानसिक रोगों से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या में बाढ़ सी आ गई है। विश्व स्वास्थ्य संघ की रिपोर्ट के अनुसार दो तिहाई मनुष्य जाति किसी न किसी तनाव जनित मानसिक रोग से पीड़ित हैं। पश्चिम के विकसित देशों में स्थिति अधिक गम्भीर है।

तथाकथित प्रगतिशील युग की देन तनाव रूपी महाव्याधि पूर्व में कभी इतने व्यापक एवं गम्भीर रूप में नहीं रही। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एवं विश्व के मूर्धन्य मनोवैज्ञानिक जैम्स सी. कॉलमेन के अनुसार “सत्रहवीं शताब्दी पुनर्जागरण व अट्ठारहवीं शताब्दी वैदिक काल की रही। उन्नीसवीं शताब्दी प्रगतिकाल की रही व बीसवीं शताब्दी को चिंताओं का काल (तनाव युग) कहा जा सकता है।”

भोगवादी मूल्यों पर आधारित आज की भौतिकवादी सभ्यता बढ़ते तनाव का प्रमुख कारण है। इसी के कारण असंयमित आचरण जीवन का अविच्छिन्न अंग बन गया है। प्रगति की अंधी दौड़ में मनुष्य मानवीय मर्यादा, नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों को तिलाञ्जलि दे चुका है। एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रतिस्पर्धा, विलासी जीवन, अमर्यादित आचरण , उद्दण्ड व्यवहार एवं विकृत चिंतन दिनचर्या के अंग बन गये हैं। परिणामतः बढ़ती असुरक्षा, हिंसा, ईर्ष्या-द्वेष, भय, चिंता,निराशा, खिन्नता जैसे मानसिक विकार मनुष्य के जीवन में कुहराम मचाए हुए हैं।

“द स्ट्रेस सोल्यूशन” के लेखक लाहले एच. मिलर एवं अल्या डेल स्मिथ के अनुसार तनाव एक जटिल, बहुआयामी एवं वैयक्तिक समस्या है जो व्यक्ति के स्वास्थ्य, कार्यक्षमता एवं धन की तबाही कर देती है। तनाव के रूप में पड़ने वाले दबाव बाह्य परिस्थितियों पर आँतरिक मनःस्थिति के कारण हो सकते हैं। तनाव के वैयक्तिक,पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यवसायिक, वातावरणजन्य कई कारण हो सकते हैं।

तनाव के घातक प्रभावों के कारण इसका उपचार आवश्यक है। इसका पूर्ण उपचार तो शक्य नहीं लेकिन जीवन शैली, कार्यप्रणाली एवं चिंतन पद्धति में आवश्यक सुधार एवं परिवर्तन कर इसे हल्का अवश्य किया जा सकता है। वैसे तनाव से पूर्ण शान्ति सम्भव भी नहीं है और न ही आवश्यक भी है। लाइले एवं अल्मा के अनुसार यह सही है कि तनाव स्वास्थ्य की तबाही कर देता है लेकिन यह आवश्यक भी है। शिशु जन्म, नव अभियान में सफलता, नये शहर में बदलाव आदि चुनौतीपूर्ण एवं रोमाँचक कार्य एवं घटनायें ऐसी हैं जो उतना ही तनाव उत्पन्न करते हैं जितना कि कोई दुर्घटना या विध्वंस की स्थिति का तनाव। इसके बिना तो जीवन नीरस ही हो जाये।

तनाव से राहत के लिए आज तरह-तरह की औषधियाँ इजाद हैं। तनाव से तत्काल मुक्ति के लिए लोग दर्दनिवारक, (टेंक्वलाइजर) औषधियों, यहाँ तक कि शराब एवं अन्य नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। यह सब तनाव रूपी महाव्याधी का समाधान नहीं है। “रिलीज फ्रॉम नर्वस टेन्शन” के मूर्धन्य लेखक डेविड हेरोल्ड फिंक के अनुसार ये शान्तिदायिनी औषधियाँ आपात समय में तात्कालिक राहत दे सकती हैं लेकिन तनावजन्य मनःस्थिति का स्थायी समाधान इनसे नहीं हो सकता। उनके शब्दों में मन की शान्ति का एक ही उपाय है स्वयं से, दूसरे लोगों से व संसार में प्रेम। अपने विचार, समय व ऊर्जा का संयम व सुनियोजन। औषधियों के रूप में किये गये उथले उपचार तो अपनी ध्वंसात्मक प्रकृति के कारण अन्ततः तनाव को बढ़ाने वाले ही सिद्ध होते हैं।

तनाव के स्वरूप व उद्गम स्रोत के अनुरूप इसका उपचार होना चाहिए। यदि तनाव अपनी कार्यशैली में दोष के कारण है तो उसमें आवश्यक हेर-फेर कर सुधारा जा सकता है। यदि कार्य की अधिकता तनाव का कारण हो तो कार्यों को प्राथमिकता के आधार पर करके इसे निपटाया जा सकता है। यदि कार्य करते-करते मानसिक थकान लगे तो काम को बदलकर शारीरिक श्रम या अन्य मनोरंजन प्रधान कार्य द्वारा इसे बदला जा सकता है। इसमें आत्मीय बन्धुओं से गप-शप या बाहर टहलने आदि का क्रम भी बनाया जा सकता है। सप्ताह अंत में एक दिन किसी निर्जन स्थान पर प्रकृति की गोद में घूम- फिर कर मन को हल्का व तरोताजा कर सकते हैं।

तनाव का कारण दूसरों के साथ अपनी व्यवहार जन्य त्रुटियाँ भी हो सकती हैं। इस संदर्भ में दूसरों का यथोचित सम्मान करें। दूसरों के कार्य में अनावश्यक हस्तक्षेप न करें। कम बोलें व अधिक सुनें। अपने काम को ईमानदारी व जिम्मेदारी से करें। जिद्दीपन व दुराग्रह को त्याग दें। सबसे सामञ्जस्य बिठाकर सौहार्द्रपूर्ण वातावरण बनाये रखें।

लेखन, पेंटिंग, ड्राईंग, नाचकूद, ड्रामा जैसी कलात्मक अभिव्यक्तियों द्वारा हम तनाव को शानदार ढंग से कम कर सकते हैं। भावनात्मक उद्वेग के क्षणों में कागज पर उतारने से तनाव कम हो जाता है। शोध, अध्ययन में पाया गया है कि ऐसा करने से व्यक्ति के रोग -प्रतिरोधी तत्त्व जैसे ही टी सेल्स और किल्र सेल्स में उल्लेखनीय वृद्धि हो जाती है। दिनभर की उथल-पुथल तक विस्तृत करने पर यह प्रक्रिया प्रकारान्तर में डायरी

लेखन का रूप ले लेती है जिसकी महत्ता आत्म निरीक्षण व व्यक्तित्व निर्माण के रूप में असंदिग्ध है।

नाचकूद में शरीर के व्यायाम के साथ तनाव से राहत मिलती है। वैज्ञानिकों के अनुसार गुर्दे से बॉर एपिनेफरिन नामक रसायन इसमें सहायक होता है। कलात्मक अभिव्यक्ति द्वारा मस्तिष्क के दोनों गोलार्धों के बीच सम्बन्धों में मजबूती पायी गयी है जो समस्याओं के समाधान को सरल बनाती है व कठिनाइयों से जूझने की शक्ति बढ़ा लेती है। मनपसंद संगीत भी तनाव से राहत का प्रभावशाली उपाय है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि सूर्यास्त के समय संगीत सुनने से मस्तिष्क से एण्डोरफिन नामक रसायन पदार्थ निकलता है जो रोग प्रतिरोधक संस्थान को मजबूत करता है।

आज मनोविज्ञान में ‘आर्ट थेरेपी’ के अंतर्गत क्रोध अवसाद आदि से ग्रसित व्यक्ति को कागज, केन्वास व कलम-ब्रश थमाकर अपने गुस्से व अवसाद को कागज या केन्वास पर उगलवा कर हल्का तथा शान्त किया जाता है। चिकित्सा विज्ञानी कला अभिव्यक्ति द्वारा स्तन कैंसर ऑपरेशन के बाद विक्षुब्ध एवं तनावग्रसित महिलाओं को राहत दिलवा रहे हैं।

हँसना तनाव की सबसे बड़ी औषधि है। विशेषज्ञों का कहना है कि हँसते समय मस्तिष्क से एण्डोफिन नामक रसायन निस्सृत होता है जो पीड़ा में कमी करता है व प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। जीवन की परेशानियों व कुण्ठाओं से उत्पन्न तनाव को हल्का करने का एक उपाय यह भी है कि अपने हृदय की किसी विश्वसनीय बन्धु के आगे खोलें। इससे मन हल्का हो जायेगा व समस्या का समाधान हो जायेगा। जब हम अपने लिए ही परेशान हों, तब दूसरों के लिए भी कुछ करने की सोचें। इससे हमें असीमित आनन्द मिलेगा।

आहार सम्बन्धी असंयम एवं लापरवाही भी तनाव का एक प्रधान कारण है। अति−आहार के कारण पेट में अपच-कब्ज, शरीर में आलस्य व मस्तिष्क में जड़ता कि शिकायत बनी रहती है। पेट हल्का रहे तो शरीर व मन मस्तिष्क सभी हल्के, स्फूर्तिवान व शान्त रहते हैं।

अपने आहार-विहार, कार्य पद्धति एवं दिनचर्या के व्यवस्थित होने पर भी जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों के थपेड़े तनाव पैदा कर देते हैं। इसके लिए आध्यात्मिक उपचार (साधनाओं) द्वारा अंतर्मन को मजबूत बनाया जाये। अध्यात्म दर्शन के समर्थ सम्बल द्वारा जीवन के दृष्टिकोण एवं कार्यपद्धति में हेर-फेर कर जीवन को अधिक रोमाँचकारी व तनावरहित बनाया जा सकता है।


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