विज्ञान की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि ‘जिनाँम’ की जानकारी

January 2003

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जीन आनुवाँशिक गुणों के वाहक हैं। ये जीवन के निर्देशक एवं नियामक होते हैं। जीन रूपी इस सूक्ष्म कृति में समूचा मानव जीवन छुपा एवं सुप्त रहता है। यह तीन अक्षरों के युग्म होते हैं। आनुवाँशिक निर्देश के कार्यान्वयन का कार्य प्रोटीन द्वारा होता है। एन्जाइम समेत इन रसायनों का निर्धारण जीन करते हैं। वे जीन के निर्देशों का पालन करते हैं तथा कोशिका के काम को क्रियान्वित करते हैं। जीनोम किसी जीव में आनुवाँशिक पदार्थ की समूची व्यवस्था है। मानव जीनोम में तीन अरब डी.एन. ए. होते हैं। डी.एन.ए. जीवन की मौलिक रासायनिक इकाई है।

जीनोम के ज्यामिति शास्त्रियों ने अंतरकोशिकीय रहस्य के रूप में जीवन की परिकल्पना की है। यह स्वप्न लोक जैसे मोहक एवं आकर्षक लगता है। इसके स्वप्न दृष्ट थे- हक्सले। सन् 1932 में प्रकाशित ‘ब्रेव न्यू वर्ल्ड’ में आनुवाँशिकी की पटकथा लिखी गई थी। अब प्रजनन तथा अनुकूलता के आधुनिक केन्द्र में जीनोम का पदार्पण हुआ है। इस प्रोजेक्ट की स्थापना 1986 में हुई। सन् 1990 में इसका वास्तविक स्वरूप एवं क्रियान्वयन प्रारम्भ हुआ। सन् 1997 में पूर्ण मानवी जीनोम का प्रकाशन हुआ। अब इसके निर्माण सम्बन्धी खोज में 50 देश सम्मिलित हैं। ये हैं- आस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, डेनमार्क, फ्राँस, जर्मनी, इजराइल, इटली, जापान,कोरिया मैक्सिको, नीदरलैण्ड, रूस, स्वीडन, इंग्लैण्ड और अमेरिका आदि।

मानव जीनोम तीन अरब रासायनिक रेखाओं का तंतु है। डी.एन.ए. समस्त जीवन का बुनियादी निर्माण प्रखण्ड है। इसका रहस्योद्घाटन जून 2000 में हुआ। इस अन्वेषण का श्रेय दो प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी वैज्ञानिक क्रेग वैटर एवं फ्राँसिस कोलिंस को जाता है। इन्होंने मनुष्य का विस्तृत एटलस प्रस्तुत किया है। इसमें वैज्ञानिकों ने उस प्रश्न का समाधान देने का प्रयास किया गया है कि मानव कैसे मानव बना। इस संदर्भ में ब्रिटेन स्थित वंलकम ट्रस्ट के डायरेक्टर माइकल डेक्सटर का कहना है कि यह परिणाम अनुसंधानकर्त्ताओं का धरोहर है।

समस्त प्राणियों में मानव सबसे जटिल जीव है। अत्याधुनिक अन्वेषण रूपी जीनोम के अनुसार मनुष्य में एक लाख से अधिक जीन के तंतु पाये जाते है। अमेरिकी वैज्ञानिक इसकी संख्या 26 से 38 मानते हैं। ब्रिटिश वैज्ञानिक इसे 30 से 40 हजार बताते हैं। जीन की यह संख्या सन् 2000 में प्रकाशित ‘बुक ऑफ लाइफ’ में उल्लेखित जीनों की संख्या की तुलना में एक चौथाई है। परन्तु वर्तमान एटलस में मानव शरीर में 30,000 जीन का जिक्र हुआ है। मानव जीन की यह संख्या चूहे के जीन के लगभग बराबर, मक्खी के जीन से तीस गुना और वैवरीरिया से पाँच गुना अधिक है।

ब्रायन जे. फोर्ड ने अपनी पुस्तक ‘जीन’ में स्पष्ट किया है कि एक मानव डी.एन.ए. में 80 हजार जीन होते हैं। जीन की सम संख्या के अनुसार वेस पेयर निश्चित नहीं होता है। एक जीन में हजारों वेस पेयर हो सकते हैं। एक जीन 12,000 बेस पेयर कोड करता है जिससे 4,00 एमीनो एसीड का निर्माण सम्भव है। हमारे शरीर में एक लाख प्रकार के प्रोटीन होते हैं। जीन एमीनो एसिड के निर्माण हेतु जिम्मेदार है। एक प्रोटीन 20 विभिन्न प्रकार के एमीना एसिड से विनिर्मित होता है। आधुनिकतम शोध के अनुसार मानव डी.एन.ए. संरचना में 3 विलियन रासायनिक बेस होते हैं।

जीनोम जीन के अनावृत्त रहस्यों पर प्रकाश डालता है। यह इनके वास्तविक स्वरूप की भी जानकारी प्रदान करता है। इस प्रोजेक्ट के पूर्व की मान्यता थी कि प्राणी की संरचना की जटिलता बढ़ने के साथ ही डी.एन.ए. की मात्रा बढ़ जाती है। वैज्ञानिक अब भी इसे सही मानते हैं। परन्तु सैलेमेण्डर इसका अपवाद है। यह अत्यन्त छोटा जीव होने के बावजूद इसमें डी.एन.ए. की मात्रा मानव से तीस गुनी अधिक होती है। लिली में 90,000 मिलियन वेस पेयर होते हैं। यह संख्या बैक्टीरिया में 4.7 मिलियन वेस पेयर, यीस्ट में 15 मिलियन, नोमोटोड में 80 मिलियन, चूहा में 3,000 मिलियन, सैलेमेण्डर में 90,000 मिलियन वेस पेयर होते हैं।

कुछ विशिष्ट जीन को छोड़ दिया जाये तो शेष जीन चूहों और मनुष्यों में एक समान होते हैं। सभी मनुष्यों में जेनेटिक पदार्थ की एकरूपता 99-99 प्रतिशत होती है। क्रेग वेण्टर के सहयोगी एवं सलेरा के वरिष्ठ विज्ञानी मणिसुब्रमण्यम् ने इस तथ्य को अद्भुत एवं आश्चर्यजनक माना है। जब विभिन्न नस्लों-काकेशियाई, अफ्रीकी, अमेरिकी और एशियाई के मानव जीनोम अनुक्रम की तुलना की तो प्राप्त निष्कर्ष भी चौंकाने वाले थे। उनके बीच अद्भुत समानतायें थीं। प्रत्येक दस हजार वर्षों के कूट वाचन में एक अश्वेत और एक श्वेत व्यक्ति के बीच केवल एक वर्ष का अन्तर मिला। इसी वजह से मेसम्पुसंट्रस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी सेण्टर फार जीनोम रिसर्च में सिक्वेसिंज सेंटर के सहायक निर्देशक चाड नासबाय कहते है कि जेनेटिक दृष्टिकोण से समस्त मानव एक समान है। यहाँ पर ‘मानव मात्र एक समान-एक पिता की सब सन्तान’ की उक्ति चरितार्थ होती देखी जा सकती है।

जीनोम योजना के अनुसार पृथ्वी पर मनुष्य की उत्पत्ति सम्भवतः एक लाख वर्ष पूर्व हुई। हालाँकि यह अत्यन्त छोटा काल है फिर भी यह मानवी विकास के संदर्भ में यह कई जानकारियाँ प्रस्तुत कर सकता है। ‘बुक ऑफ लाइफ’ में उल्लेख मिलता है कि कुछ विशिष्ट जीन मानव व्यवहार को प्रभावित एवं नियंत्रित करते हैं। पहले-पहल हुए शोध के निष्कर्ष स्पष्ट करते हैं कि मानव अपने जीन का गुलाम है। जीन ही मानवी व्यवहारों का आधार हैं। ये ही इस पर नियंत्रित करते हैं। परन्तु आधुनिक शोध परिणाम के अनुसार जीन मनुष्य की कुछ जैविक क्रियाओं को नियमित करते हैं। इससे स्वभाव भी प्रभावित होते हैं। प्रभाव मनुष्य के व्यवहार के लिए वातावरण एक महत्त्वपूर्ण कारक है। मनुष्य का भावनात्मक विकास, शारीरिक गठन एवं उदात्त चिंतन उसके आसपास के वातावरण से तय होते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में डॉ. क्रेग वेण्टर का कहना है कि जीन मनुष्य के व्यवहार को नियंत्रित करते हैं,इस तथ्य को पुष्ट करने के लिए विशिष्ट जीन का पता नहीं लग पाया है। परन्तु आशा की जा रही है कि इस प्रकार के जीन की खोज कर ली जायेगी।

जीन संरचना के अन्वेषण के क्रम में तितली ही सर्वप्रथम प्राणी है जिसकी अध्ययन किया गया। उसके शरीर में 13 हजार जीन पाये गये। तब वैज्ञानिक मान्यता थी कि मानव शरीर में एक तितली या दूसरे किसी कीट पतंगे की तुलना में कई गुना जीन होंगे। परन्तु आधुनिक अन्वेषण से विदित होता है कि मनुष्य की जीन की संख्या इनमें केवल दो गुना होता है। डॉ. वेण्टर के अनुसार कुछ जीन तो चूहे, बिल्लियों, कुत्तों एवं मनुष्यों में एक समान होते हैं। मानवी क्रोमोसोम में सैकड़ों जीन होते हैं जो बैक्टीरिया द्वारा लाये गये हैं। कुत्ते में 85 प्रतिशत जीन इंसानी जीन के सदृश्य होते हैं। कुत्तों की 380 आनुवाँशिक बीमारियाँ मनुष्यों में भी होती हैं। इनमें से अंधापन और लीवर खराब होना शामिल है। नासबाय के अनुसार चूहे और मनुष्यों में जीन की कार्यशैली में अन्तर है। मनुष्य के जीन चूहों की अपेक्षा अधिक सशक्त व अधिक प्रोटीन का निर्माण करते हैं।

मानवी शरीर की संरचना तैयार हो जाने से चिकित्सा क्षेत्र में तीव्र विकास की संभावना बढ़ी है। इससे बीमारी एवं उनकी चिकित्सा में गुणात्मक परिवर्तन आ सकता है। जीन की पहचान हो जाने से बीमारी का उपचार सहज हो गया है। अब उपचार की प्रक्रिया हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग होगी। यह अत्यन्त प्रभावी सिद्ध हो सकता है। मानवी जीनों की समानता के बावजूद रुग्ण जीन की पहचान की जा सकती है। अब तक 40 रुग्ण जीनों का परिचय मिल चुका है।

चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में एक अभूतपूर्व उपलब्धि मिली जब एण्डी नामक विश्व का प्रथम रूपांतरित डी.एन.ए. बन्दर पैदा हुआ। कुछ वैज्ञानिक इसे अल्जीमर्स व कैंसर जैसी असाध्य बीमारियों के विरुद्ध संघर्ष का प्रतीक मानते हैं तो कुछ इसे मानव जाति के लिए असाधारण क्षण मानते हैं। डॉ. जैरल्ड शैटन खंडा. एन्थोनी चान के दल ने रीसस बन्दरों के अनिषेचित अण्डों में फ्लूरेसेण्ट जैलीफिश में पाये जाने वाले ‘मार्कर जीन’ प्रवेश कराये। इन अण्डों को प्रयोगशाला में निषेचित करके धात्री माता नामक बन्दरिया के गर्भाशय में किया गया। इसके परिणाम स्वरूप जन्मे जीन बानर शिशुओं में से एक का नाम एण्डी रखा गया। इन तीनों बानरों में एकमात्र एण्डी के जेनेटिक ब्लूप्रिण्ट में ही मार्कर जीन का सफलतापूर्वक एकीकरण हो पाया था। यदि एण्डी की सन्तानें होंगी, तो ये मार्कर जीन उनके संतानों में पहुँच जायेंगे।

ओरेगान रिजनल प्रिमेट सेण्टर के डॉ. जैरल्डौटन के अनुसार इस बन्दर का जन्म मानव जाति के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना है। इनका कहना है कि बानरों को अब इस प्रकार रूपांतरित किया जा सकता है जिससे कि वे विभिन्न प्रकार से सम्बन्धित जीन को अपने अन्दर वहन कर सकें। ऐसे बंदरों के औषधि निर्माण सम्बन्धी क्षेत्र में उपयोग किया जा सकता है। इनकी उपयोगिता का कारण है इनका 98 प्रतिशत डी.एन.ए. मानव जीन से सम्बन्धित होना। डॉ. चान ने स्पष्ट किया है कि अब ऐसे जानवरों को जन्म दिया जा सकता है जो इंसानी रोगों का अनुकरण कर सकते हैं। अल्जीमर्स रोग जैसी जेनेटिक स्थितियों वाले बंदरों को जन्म देना संभव है। इन पर इस रोग के उपचार के लिए नई दवाइयों का प्रयोग भी किया जा सकता है।

चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र में जैविकीय रूपांतरित चूहों का उपयोग किया जा चुका है। वैज्ञानिक आचार संहिता के जनक ‘दि जेनेटिक रिवोल्युशन’ कृति के लेखक प्रोफेसर पैट्रिक डिक्सन की मान्यता है कि यह प्रयोग अजन्मे शिशुओं में जैविकीय दोषों के निवारण हेतु किया जा सकता है। परन्तु यह बड़ा ही संवेदनशील मामला है क्योंकि इसमें जरा सी भी छेड़खानी अगले एक लाख पीढ़ी को प्रभावित कर सकती है। जीनोम प्रोजेक्ट द्वारा हजारों की संख्या में अस्वस्थ जीन की पहचान की जा सकती है। वर्तमान समय में केवल 483 ऐसे जीनों की जानकारी है। चूँकि मानवी जीनों में काफी समानता होती है परन्तु इनके जेनेटिक कोड में भारी अन्तर होता है। यही वह कारण है जिससे चिकित्सा जगत् में आशातीत सफलता पायी जा सकती है। अतः नवीनतम उपचार बेहद व्यक्तिगत होने की संभावना है। वैज्ञानिक भविष्यवाणी है कि कुछ ही वर्षों में बीमारी के लक्षण दिखने से पूर्व ही इसका पता लगाया जा सकता है।

जीन यदि रुग्ण है तो इसमें परिवर्तन की संभावना बनी रहती है, इसमें सूक्ष्म हलचलें होती हैं। इन्हीं के आधार पर उपर्युक्त उपचार किया जा सकता है। दवाओं के निर्माण के लिए भी यही कारक प्रयुक्त हो सकता है। प्रमुख ब्रिटिश जीव विज्ञानी जेनेट वेनब्रिज के अनुसार वर्तमान में प्रचलित दवायें अनुमानों पर आधारित हैं। जीनोम परियोजना दवा निर्माण में कारगर एवं सफल भूमिका अदा कर सकती है। ग्लैक्सोस्मिथ विलन के उपाध्यक्ष डॉ. क्लाइव डिक्स ने इसे उत्साहवर्धक माना है। बीमारी का पता भी आसानी से लग सकता है। ज्ञान वर्ष के अथक परिश्रम से सिस्टिक फाइब्रोसिस का पता चल पाया। चिकित्सा इतिहास में यह प्रथम रुग्ण जीन था। जीनोम के अंतर्गत कुछ क्षण में ही इस बीमारी की जानकारी मिल जायेगी। अब तक ऐसे 30 जीन का परिक्षण हो चुका है। इसमें से कैंसर, वर्णान्धता और मिर्गी जैसी कुछ सामान्य रोग भी शामिल हैं।

यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन के जीनोम सेंटर के संयोजक और कोलिंस के नेतृत्व वाले अन्तर्राष्ट्रीय संघ में सहकर्मी जेनेटिक विज्ञानी रविंदर कोल के अनुसार जन्म से ही जेनेटिक संरचना के पता लग जाने से इसका उपचार किया जा सकता है एवं बीमारी से बचा जा सकता है। जो बीमारी एक जीन द्वार होती है उसकी प्रक्रिया सरल होती है परन्तु कई जीनों द्वारा उत्पन्न रोग को ठीक करना जटिल होता है। दमा कई जीनों के सम्मिलित प्रभावों का परिणाम है। अतएव दमा को स्वस्थ करने के लिए जिम्मेदार हर जीन के साथ उन समीकरणों के अध्ययन की आवश्यकता है,जिससे वे अन्तः क्रिया करते हैं।

इस प्रकार जीनोम एक उपलब्धि है, जिससे मानव को रोग मुक्त करने में एवं नवीन शोध अन्वेषण करने में सहायक है। जहाँ तक बीमारी से मुक्त होने की बात है, यह मन पर अधिक निर्भर करता है। स्वस्थ दिनचर्या एवं सशक्त मन द्वारा सहज सरल जिन्दगी जिया जाना सम्भव है। जीवन के यही सद्गुण भावी जीवन क्रम को प्रभावित करते हैं। अतः सदैव सद्कर्म एवं सद्चिन्तन करते रहना चाहिए।


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