बंदा वैरागी भक्तिकाल में ही जन्मे। बहुत दिन संतों के सत्संग में रहे। साथ ही बाहर से निरंतर आने वाले आक्रमणकारियों का अनाचार भी देखते रहे। वे गंभीरतापूर्वक सोचने लगे− इन दिनों जनता में शौर्य, साहस, पराक्रम और प्रतिरोध की भावना भरी जानी चाहिए। देवताओं की प्रार्थना से सब दुःख दूर हो सकते हैं, इस भ्राँत धारणा को हटाया जाना चाहिए अन्यथा प्रतिरोध के अभाव में आक्रमणकारियों के हौसले बढ़ते ही रहेंगे और वे भारत का जो भाग स्वतंत्र है, उसे भी पैरों तले रौंद डालेंगे।
उनने सोचा, संत लोग बेसमय बेतुकी शहनाई बजा रहे हैं और परोक्ष रूप से आक्राँताओं के प्रतिरोध का रास्ता रोककर आक्राँताओं के ही सहायक बन रहे हैं। बंदा वैरागी ने जितना अधिक विचार किया, उतना ही उन्हें यह तथ्य स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगा।
उनने अपनी विचारपद्धति और कार्यशैली बदली। अपने शिष्यों−साथियों को तथ्यों से अवगत कराया और आक्राँताओं के मुँह तोड़ने की तैयारी करने लगे। यद्यपि वे आक्राँताओं द्वारा पकड़े जाने पर मृत्युदंड के भागीदार बने, पर सभी विचारशील ने उन्हें ‘सत्य के लिए शहीद हुआ संत सैनिक’ कहकर सराहा और उनके बलिदान से नई प्रेरणा ली।